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जुएका अभिशाप


अन्य सभी पारसी भाइयोंसे निवेदन करता हूँ कि उन्होंने जहाँसे गलत रास्ता पकड़ा था वहाँ जल्दीसे-जल्दी वापस लौट जायें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २२-६-१९२१

११९. जुएका अभिशाप

सम्पादक
‘यंग इंडिया’
महोदय,

यह बड़ी प्रसन्नता की बात है कि ‘यंग इंडिया’ और इसके सम्पादक महोदयने जुएकी बुराइयोंका सवाल उठाया है। लेकिन मुझे लगता है कि यों कभी-कभी ‘यंग इंडिया’ में इक्के-दुक्के लेख लिख देनेसे पश्चिमसे आई इस बुराईका जड़-मूलसे नाश नहीं किया जा सकता। यह तो अब निठल्ले बैठे रहनेवाले धनी लोगोंसे बढ़ते-बढ़ते व्यापारी वर्ग, मध्यम वर्ग, कारखानोंमें काम करनेवाले मजदूरों और स्कूलोंके छात्रों तकमें फैल गई है। हर सप्ताह नियमित रूपसे घुड़दौड़ोंमें जाकर बाजी लगानेवाले हजारों-हजार लोगोंके अलावा, हजारोंकी तादाद में ऐसे लोग भी हैं जो बीच शहरमें खुलेआम सट्टेकी दुकानोंमें सट्टेबाजीके रूपमें जुआ खेलते हैं। सरकारने इन दुकानोंको बन्द कराने के सवालपर विचार करनेके लिए एक समिति नियुक्त की है, और अगले सत्रमें वह इस सम्बन्धमें कोई कानून भी पास करेगी। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इस बुराईके विरुद्ध जनमत तैयार करना चाहिए और निश्चित रूपसे यह सिद्ध कर देना चाहिए कि घुड़दौड़ोंमें दाँव लगाना और सट्टा खेलना भी शराबखोरी और वेश्यागमन-जैसा ही बुरा काम है। इसके लिए एक प्रबल आन्दोलनकी जरूरत है, और मुझे आशा है कि ‘यंग इंडिया’ के पाठक इसमें साथ देंगे।

बम्बई
२६-५-१९२१

आपका,
सत्य

जैसा कि मैं कह चुका हूँ, दुर्भाग्यवश घुड़दौड़ और घुड़दौड़ोंके सिलसिले में जुआ खेलना फैशनकी चीजें हो गई हैं। ये चीजें लोगोंमें लज्जाकी वह भावना नहीं जगातीं जो शराबखोरी जगाती है। इसलिए शराबखोरीकी तुलनामें घुड़दौड़की कुटेवसे निबटना ज्यादा मुश्किल है। ‘सत्य’ महोदयको घुड़दौड़की बुराइयोंका खास ज्ञान है। मैं तो

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