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युद्धोन्मुख डा० पॉलेन


उठाते और सर्वविज्ञताका अहंकार रखते हैं और फलस्वरूप अपने मत के बारेमें आश्वस्त बने रहते हैं। इस तरहके लोगोंपर केवल दो ही बातें असर पैदा कर सकती हैं ― हिंसा या असहयोग। यदि हत्या हो जाती है तो वे परेशान होकर दौड़धूप करने लगेंगे; और यदि आप बोल-चाल बन्द कर दें तो वे पूछने लगेंगे कि बात क्या है। हत्यासे उत्पन्न मानसिक आघात आदमीको सक्रिय तो बना सकता है, पर उससे उसका विवेक तो शायद ही कभी जागता हो। उससे कटुता पैदा होती है और आतंकवादी कृत्योंकी प्रवृत्ति भी पैदा हो सकती है। इससे कुछ राहत मिली-सी महसूस हो सकती है, लेकिन बहुधा वह राहत मूल विषमता या रोगसे भी अधिक खतरनाक साबित होती है। दूसरी ओर बुराईके साथ कोई भी सरोकार रखने, बातचीतका रिश्ता रखने, उसमें हाथ बँटाने, आत्मपतनमें किसी भी तरह की कोई सहायता देने और गलत काम करनेवाले के साथ सहयोगसे इनकार किया जाये तो व्यक्तिको आत्मिक बल मिलता है, गलत काम करनेवाले का विवेक जागता है और वह उसके मनको शुद्ध बनाता है। हिन्दुस्तानने यही मार्ग अपनाया है और यह सदैव अन्य सभी मार्गों से बढ़कर होगा। डा० पॉलेनमें दिमागी काहिली इतनी है कि वे इतना समझनेकी भी कोशिश नहीं करते कि असहयोग तो हिंसा के खिलाफ सबसे बड़ी गारंटी है, इसलिए हिंसाको असम्भव बनाना उसमें अनिवार्यतः शामिल है। वह हिंसाको जड़-मूलसे उखाड़ने का प्रयास है। असहयोगने कमसे कम इतना तो किया ही है कि हिंसाकी सम्भावनाको कुछ समय के लिये टाल दिया है, और अगर लम्बे अर्सेतक इसपर अमल करें तो उससे जनतामें एक ऐसी शक्ति पैदा हो जायेगी कि उनको हिंसा बिलकुल ही बेमतलब, गैर-जरूरी लगने लगेगी। असहयोग एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जो रक्तके विकारको दूर करके शरीरको चंगा करती है। वह बिना ऑपरेशनकी चिकित्सा है।

डा० पॉलेनको इतना तो मालूम होना ही चाहिए था कि मैं ब्रिटिश मालके बहिष्कारका आज भी उतना ही विरोधी हूँ जितना कि पहले कभी था। मैं जो आज कह रहा हूँ वही सदासे कहता आया हूँ कि सर्वदा विदेशी वस्त्रोंका पूरा-पूरा बहिष्कार किया जाना चाहिए और उन सब वस्तुओंका भी बहिष्कार होना चाहिए जिनको हिन्दुस्तानमें अच्छी तरहसे तैयार किया जा सकता है। मैंने जिस स्वदेशी की कल्पना की है, उसमें किसीको दण्ड देने या किसीसे बदला लेनेके भावकी कोई गुंजाइश नहीं। उसका मतलब है अपनी मदद आप करना, अपना काम खुद करना और इस नैसर्गिक नियमको स्वीकार करना कि मानवताकी सर्वोत्तम सेवा अपने बिलकुल निकटके मानव समाजकी सहायता करना ही है। हिन्दुस्तान यदि अपने पैरोंपर खड़ा हो जायेगा तो वह सारे संसारके लिए सहायक सिद्ध होगा; और यदि वह असहाय बना रहेगा, मैनचेस्टर और जापानके वस्त्रोंपर निर्भर रहेगा, तो वह अपने लिए और मैनचेस्टर तथा जापानके लिए भी हानिकारक सिद्ध होगा।

डा० पॉलेनने तारीखें भी गलत सलत लिखी हैं। मैंने वाइसरायको असहयोग आन्दोलन के काफी पहले लिखा था[१], जब कि उनका कहना है कि मैंने उसके बाद

  1. देखिए खण्ड १४, पृष्ठ ३५७-६०।