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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


लिखा था। तब मुझे ब्रिटिश सरकारपर भरोसा था। मैंने ब्रिटिश शासनकी निन्दा करना वाइसरायके नाम अपनी खुली चिट्ठी के दो वर्ष बाद शुरू किया था।

मैं डा० पॉलेनको इतना और बता देना चाहता हूँ कि आज मैं उसी ब्रिटिश शासन-पद्धतिका सबसे कट्टर शत्रु हूँ जिसे मैं कभी अज्ञानवश अपना मित्र समझता था। पर ब्रिटिश शासन पद्धतिका सबसे कट्टर शत्रु होते हुए भी, मैं अपने-आपको ब्रिटिश जनताका मित्र मानता हूँ। मेरा धर्म कहता है कि न मित्र रखो, न शत्रु। मैं इसीलिए डा० पॉलेनको आश्वस्त करता हूँ कि ब्रिटिश जनता के प्रति मेरा भाव सदा वही रहेगा जो भाइयोंका भाइयोंके प्रति होता है और मैं उनके प्रति उसी भावनासे प्रेरित होकर कार्य कर रहा हूँ जिस भावनासे अपने सगे भाइयोंके लिए सक्रिय होता हूँ।

मैंने शासन-व्यवस्थाके लिए जिन विशेषणोंका प्रयोग किया है, जिनका प्रयोग करना मैंने अपना कर्त्तव्य माना है, मुझे उनपर दृढ़ रहना चाहिए; और मेरा कर्त्तव्य है कि मैं बुरी चीजको बुरी कहते हुए भी, बुराई करनेवालों के प्रति जनताके घटिया आवेगोंको भड़कने से रोकूं, अर्थात् उनको प्रतिहिंसक बननेसे रोकूं। किसी भी रोगको इस डरसे छिपाना या अनदेखा करना तो ठीक नहीं होगा कि मरीज उसकी जानकारी पाकर पीड़ा और दुश्चिन्ताओंसे पागल हो जायेगा। रोगके बारेमें उसे आगाह तो कर ही देना चाहिए और साथ ही उसका कोई माकूल इलाज भी तजवीज करना चाहिए।

डा० पॉलेनके पत्रमें इस अज्ञानभरी प्रस्तावना के बाद फिर उन सभी स्थापनाओंका खण्डन किया गया है जिनमें मैं और मेरे देशवासी विश्वास करते हैं। पर उन्होंने अपने खण्डन-मण्डनके पक्षमें कोई प्रमाण नहीं जुटाया है। हमारी ये स्थापनाएँ हैं:

(१) हिन्दुस्तानका प्रशासन संसार-भर में सबसे अधिक खर्चीला है।
(२) हिन्दुस्तान आज जितना गरीब है उतना पहले कभी नहीं रहा।
(३) शराबखोरीका जितना जोर आज है उतना पहले कभी नहीं रहा (यह तो कोई कहता ही नहीं कि अंग्रेजोंके आनेसे पहले हमारे यहाँ शराबखोरी बिलकुल नहीं थी।)
(४) कोई और उपाय न देखकर हिन्दुस्तानमें अब आतंकपूर्ण कार्रवाइयोंके बलपर शासन कायम रखा जा रहा है।

डा० पॉलेनने इन सभी जानी-मानी सचाइयोंको गलत कहने के साथ यह आग्रह भी किया है कि यहाँका प्रशासन संसार-भर में सबसे कम खर्चीला है। वे भूल जाते हैं कि ‘इंडियन सिविल सर्विसवालों’ को संसार भरमें सबसे ऊँचा वेतन मिलता है और सरकार को जितना राजस्व मिलता है उसका एक-तिहाईसे भी ज्यादा भाग सेनापर खर्च किया जाता है। अब जरा एक ऐसे परिवारकी कल्पना तो कीजिए जिसे अपनी कुल आमदनी का एक-तिहाई भाग अपनी चौकीदारी करानेपर खर्च करना पड़ता हो।

डा० पॉलेन काफी जोर देकर कहते हैं कि हिन्दुस्तान ‘सचमुच एक बड़ा ही समृद्ध देश है जिसमें अधिकांश व्यक्ति किसान हैं जो अपेक्षाकृत निर्धन और जाहिल हैं’। वे कहते हैं कि २७ रुपये प्रति व्यक्तिकी सालाना औसत आमदनीका पाँच गुना कर