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हमारी खामियाँ


भारतीय छुआछूतको खत्म करके दिखायें; वैवाहिक सम्बन्धोंमें संयम बरतकर दिखायें और शैशव कालमें ही काल कवलित हो जानेवाले अन्धाधुन्ध करोड़ों बच्चे न पैदा करें; ब्राह्मण पाठशालाओंमें सूत कातना और कपड़े बुनना सीख-कर बतायें और शारीरिक श्रमको हीन कार्य समझना छोड़ दें; और स्थानीय बोलियों में से चाहे जितनी बोलियोंको कायम रहने दिया जाये, लेकिन भारत अपनी कोई ऐसी भाषा अवश्य ही अपनाकर बताये जिसे कश्मीरसे कन्याकुमारी तक बोला और समझा जा सके। जब कोई भी काम करना हो तो भारतीयोंको, “सरकार यह करे, सरकार वह करे” कहने के स्थानपर स्वयं आगे बढ़कर उसे पूरा करने में जुट जाना चाहिए। आप ये सभी बातें कह चुके हैं, और यदि वे सभी लोग जो ‘गांधीजीकी जय’ के नारे लगाते हैं, ये काम करने लगें तो अंग्रेज जल्दी ही भारतीयोंकी उससे अधिक इज्जत करने लगेंगे जितनी अब करते हैं। ये काम पूरे करनेके बाद और भी बहुतसा काम करना होगा। इनमें ऐसी प्राचीन परम्पराओंके आतंकके खिलाफ विद्रोहका कार्य शायद सबसे महत्त्वका होगा, जिनका औचित्य अथवा उपयोग न रहा हो। आप निस्सन्देह नये-नये कार्य कराते जाने में समर्थ होंगे। इस बीच, हम देखेंगे कि क्या होता है। क्या एक करोड़ रुपये जमा हो जायेंगे? क्या बीस लाख चरखे उपलब्ध हो सकेंगे और यदि उपलब्ध हो जायेंगे तो उनसे काम भी लिया जायेगा या नहीं? क्या असहयोग आन्दोलनकारी आत्म-अनुशासन कायम रखकर दंगे- फसादसे बचे रह सकेंगे? क्या गांधी ऐसे व्यक्तियोंकी सरकारको शैतानी शासन कहना बन्द कर देंगे जो भारतको सेवाके लिए कुर्बानी देनको आमतौरपर औसत भारतीयोंसे कहीं अधिक तत्पर है? क्या नशाबन्दी आन्दोलनका निर्बाध अवैध शराबखोरीसे भी अच्छा कोई परिणाम निकल सकेगा?
काश, हमें इन सवालोंका जवाब ‘हाँ’ में मिल सकता! काश.. परन्तु क्या मिल सकेगा?
यदि सम्मान पाने योग्य काम किया जाये तो अंग्रेज सम्मान देनेके लिए तैयार रहते हैं। यह शिकायत नहीं होनी चाहिए कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियोंका आदर नहीं करते; शिकायत यह होनी चाहिए कि हिन्दुस्तानी ऐसा काम नहीं करते कि उनका सम्मान किया जा सके।
जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, मेरा यह विश्वास है कि आप बड़े-बड़े काम कर रहे हैं और आगे भी करेंगे। “प्रशंसा, आशा और प्रेम ही मनुष्यका जीवनाधार है।” इन्हींके आधारपर महान् राष्ट्रोंका निर्माण होता है। मेरी कामना है कि भारत भी उनमें एक हो।

‘जॉन बुल’ के पत्रसे ऐसा लगता है कि उसके लेखकने इस आन्दोलनको समझने की कोशिश की है। उनकी अधिकांश आलोचना सर्वथा अकारण और निराधार