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हमारी खामियाँ


लेकिन यही एक शब्द है जो इस काम के लिए ठीक ठहरता है। हम काफी दिन अपने ही अधःपतनमें सहयोग कर चुके। अब आगे और सहयोग करनेसे इनकार कर देना हमारा कर्त्तव्य है। अब तो किसीको इस बातका हिसाब लगानेकी भी जरूरत नहीं है कि किसका कितना दोष है। वस्तुस्थिति यह है, और ‘जॉन बुल’ भी इसे भली प्रकार स्वीकार कर चुके हैं, कि औसत अंग्रेजके मनमें हमारे लिए जरा-सी भी इज्जत नहीं है। इसलिए हमें तबतक के लिए उनसे अलग हट जाना चाहिए जबतक हम और वे यह न समझने लगें कि दोनोंका दर्जा बराबरीका है।

परन्तु ‘जॉन बुल’ के तर्कोंका एक दूसरा पहलू भी है। उनके रुखसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उनको इस जातिसे ही घृणा है। यदि यह मान भी लिया जाये कि वे सब कमियाँ उसी रूपमें मौजूद हैं जिस रूपमें इस पत्रके लेखकने बयान की हैं, तब भी क्या यही कारण भारतीयोंको अपनेसे हीन समझनेके लिए काफी है? अथवा क्या समता के सिद्धान्तका यह तकाजा नहीं है कि एकसे गुण हों या नहीं, परन्तु एक-दूसरेका आदर करना चाहिए? क्या ‘जॉन बुल’ स्वयं वही गलती नहीं कर रहे, जो बहुतसे हिन्दू ‘अछूतों’ के सम्बन्धमें करते हैं? यदि मेरा छुआछूतकी भावनाको दानवी प्रवृत्ति कहना सच है तो क्या अंग्रेजोंको अपने-आपको श्रेष्ठ समझनेकी भावनाको उसी नामसे पुकारना कुछ कम सच होगा? क्या अंग्रेज अपनेसे कुछ कम भाग्यशाली अंग्रेजोंसे वैसा ही बरताव करते हैं, जैसे वे हिन्दुस्तानियोंके प्रति करते हैं? जैसे हिन्दुत्वके बारेमें कहा जाता है कि उसने अछूतोंके भाग्यमें सदा-सदा के लिए अधीन रहना लिख दिया है, वैसे ही क्या अंग्रेज यह नहीं समझते कि वे शासन करनेके लिए पैदा हुए हैं और हिन्दुस्तानी हुक्म बजानेके लिए। मेरी सम्पूर्ण आत्मा मौजूदा शासनके प्रति विद्रोही हो गई है, क्योंकि मेरा विश्वास है कि जबतक अंग्रेज अपनी जातीय श्रेष्ठताका पूर्वाग्रह नहीं छोड़ते तबतक उनसे सम्बन्ध रखते हुए भारतको वास्तविक स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती। अंग्रेजोंके इसी दृष्टिकोणने योग्यसे-योग्य हिन्दुस्तानीको अपनी शक्तियोंका पूर्ण विकास कर सकनेके अवसरसे वंचित कर दिया है, इसलिए और व्यक्तिगत रूपसे अंग्रेज प्रशासकोंके नेक इरादे रखने के बावजूद हम स्वयं अपनी निगाहमें इतने नीचे गिर गये हैं कि खुद हममें बहुत-से लोग यह मानने लगे हैं कि हमारे लिए काफी समयतक अंग्रेजोंसे प्रशिक्षण लेना जरूरी है; जब कि मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि हम आज भी अपना शासन चलानेमें पूरी तरह सक्षम हैं और इसीलिए हमें दृढ़तापूर्वक इन सुधारोंको, जो पूर्ण स्वायत्तशासनसे बहुत कम ठहरते हैं, लागू करनेमें उनके साथ सहयोग नहीं करना चाहिए। इसमें सन्देह नहीं कि हमसे गलतियाँ होंगी; हो सकता है आजकी तुलनामें उस समय ज्यादा गलतियाँ हों। लेकिन हम अपनी गलतियोंसे ही सीखेंगे, गलतियाँ करनेके अवसरको बलात् रोके रहने से नहीं।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २२-६-१९२१