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१२४. भाषण : बम्बई में स्कूलके उद्घाटनपर[१]

२२ जून, १९२१

अपने भाषण के दौरान महात्मा गांधीने श्रोताओंसे जोर देकर कहा कि जिस एक-मात्र उद्देश्यको हमेशा सामने रखना चाहिए वह है स्वराज्य। उसीकी पूर्तिके निमित्त आप अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाइए। केवल वही शिक्षा उपयोगी है जो आपके बच्चों में मातृभूमिके प्रति प्रेम जाग्रत कर सके, उन्हें देशभक्त बना सके और उन्हें प्राणोंकी आहुति देकर भी वर्ष समाप्त होनेसे पहले स्वराज्य हासिल करनेके कर्त्तव्यका भान करा सके, ऐसी ही शिक्षा उन्हें दी जानी चाहिए। आपको चरखा चलाना और खद्दर पहनना चाहिए। आपको खिलाफत तथा पंजाबके सम्बन्धमें किये गये अन्यायोंका निराकरण भी करवाना है। कुमारी कृष्णाबाई और कुमारी जसलक्ष्मी यहाँ पैसेके लिए नहीं आईं वरन् अपने देशके प्रति अपना कर्तव्य निभानेके लिए आई हैं।

महात्मा गांधीने कहा कि मुझे स्कूलका उद्घाटन करनेको बुलाया गया है। यद्यपि इस समय में किसी स्कूलका उद्घाटन नहीं करना चाह रहा था। मैं पहले कई स्कूलोंका उद्घाटन कर चुका हूँ और आप जानते हैं कि इस विषय में मेरे क्या विचार हैं। उन्हें दोहराने से कोई लाभ नहीं। भारतके भाग्य चक्रकी इस नाजुक घड़ीमें इस तरहके स्कूल खोलनेका उद्देश्य केवल एक होना चाहिए और वह है स्वराज्य प्राप्त करना; इतना ही नहीं, इसी वर्षके भीतर प्राप्त करना। और फिर आपको खिलाफतका सवाल निपटाना है; और पंजाब में किये गये अन्यायका निराकरण भी करवाना है। आप इन दोनों मसलोंको नजरअन्दाज नहीं कर सकते। यदि आप इसी बरसके भीतर स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए कृतसंकल्प हैं तो आपको सोचना होगा कि उसे हासिल करनेके लिए आपको क्या करना चाहिए। आप लोगोंको अपना सारा ध्यान स्वराज्य हासिल करनेके महत्त्वपूर्ण प्रश्नपर लगा देना चाहिए और उसीके अनुसार कदम उठाने चाहिए। मैं तो ऐसा नहीं मानता कि यदि आपके बच्चे किसी तरहकी शिक्षा पाये बिना रह गये तो उनकी बहुत बड़ी क्षति हो जायेगी। आज भारत भीषण कष्ट सहन कर रहा है और हम उसके कष्टको दूर करनेके लिए स्वराज्य चाहते हैं। पहले तो आपमें अपने बच्चोंकी रक्षा करनेके लिए पूरी सामर्थ्य उत्पन्न होनी चाहिए और में यह कहे बिना नहीं रह सकता कि भारतीयों में उनकी रक्षा करनेकी सामर्थ्य नहीं है। इस कामके लिए उन्हें अपनी आन्तरिक शक्ति पहचाननी होगी। भारतीय लोग अपनी काम करनेकी क्षमताको पूरी तरह नहीं पहचान सके हैं, वे अभीतक यह नहीं जान पाये

  1. गांधीजीने गांधर्व महाविद्यालय में लोकमान्य राष्ट्रीय कन्या शालाका उद्घाटन किया। बम्बई नगरकी यह प्रथम राष्ट्रीय कन्या पाठशाला थी।