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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हैं कि वे क्या-क्या काम कर सकते हैं। जिस क्षण लोग अपने कर्तव्य पालन में अपने प्राणतक न्यौछावर करनेको उद्यत हो जाते हैं तब वे महानतम योद्धा, महानतम पुरुष कहलाते हैं।

जिस देशमें आपने जन्म लिया है, उसके प्रति कर्त्तव्य पालन करनेसे बढ़कर संसारमें कोई दूसरा काम है ही नहीं। इस नाजुक समयमें भारतीयोंको चाहिए कि वे अपने बच्चोंको अपने देशके प्रति कर्त्तव्य निभाने की शिक्षा दें। में तो उन्हें अपना कर्त्तव्य करते हुए देशके लिए मर जानेको भी कहूँगा। इस कन्या शालाको खोलनेका प्रमुख उद्देश्य यही है। यदि आपने अपने सामने सदा यह उद्देश्य रखा तो आप प्रशंसाके पात्र होंगे। परन्तु यदि आप इस स्कूलमें केवल वही विषय पढ़ाना चाहें जो सरकारी और नगरपालिकाके स्कूलोंमें पढ़ाये जाते हैं तो में आपसे कहता हूँ कि इस तरह इस सालके भीतर स्वराज्य पा सकना असम्भव है। हम लोगोंका प्रथम उद्देश्य इसी साल स्वराज्य पा लेना है। और इसी उद्देश्यको ध्यानमें रखते हुए आपको अपने बच्चोंको शिक्षा देनी चाहिए। आपको अपने बच्चोंके दिमाग में अपने देशके लिए स्वराज्य प्राप्त करनेका महत्त्व अंकित कर देना है और देशकी जरूरतोंके प्रति उन्हें जागरूक बनाना है।

इसलिए मैं कहता हूँ कि आपको इस विद्यालय में सूत कातना सिखाना चाहिए। जबतक आपमें से प्रत्येक व्यक्ति खद्दर नहीं पहनता तबतक मेरी समझमें नहीं आता कि आपको स्वराज्य कैसे मिल सकता है। यदि आप इस वर्षका अन्त होनेसे पहले सभी विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार कर सकें तो स्वराज्य लेनमें और उसे कायम रख सकने में जरा भी कठिनाई उपस्थित नहीं होगी। इस उद्देश्यकी पूतिके लिए आपको पुरुषों, स्त्रियों और बालकोंकी सहानुभूति प्राप्त करनी होगी और इसमें उनकी शक्तियों का उपयोग करना होगा। हमें इन सबको प्राप्य उद्देश्यकी महत्ता समझानी है। हम भारतवासियोंको चाहिए कि अपने बच्चोंके दिलोंमें देशभक्तिको भावना भरें। जिस स्कूलका में आज उद्घाटन कर रहा हूँ यदि वह ऐसा करे तो मैं सभी अभिभावकोंसे कहूँगा कि वे अपने बच्चोंको इस संस्थामें पढ़ने के लिए भेजें क्योंकि वे ऐसा करके न केवल अपना ही बल्कि अपने देशका भी भला करेंगे।

अभिभावकगण अपने बच्चोंको देशप्रेम सिखाएँ और उन्हें स्वराज्य हासिल करनेका रास्ता भी दिखायें। यदि लड़कोंके माँ-बाप अभीतक यह नहीं पहचान पाये हैं कि देशके प्रति उनका कर्त्तव्य क्या है तो बच्चोंसे यह आशा करना कि वे अपना कर्त्तव्य निभायेंगे, बेकार है। अभिभावकोंसे अपने बेटे-बेटियाँ वहाँ भेजने को कहने में मेरा उद्देश्य यह है कि लड़के-लड़कियाँ खद्दर पहनें और अभिभावकोंको भी खद्दर पहननेके लिए प्रेरित करें। शायद कुछ लोग यह कहें कि गांधी मूर्ख है जो उनसे खद्दर पहनने-को कहता है। इस अवसरपर हर आदमीको देशके प्रति अपना कर्तव्य पूरा करना है। आपमें से हर व्यक्तिको खद्दर पहनना है और में ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि