पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७१
भाषण : बम्बई में स्कूलके उद्घाटनपर


आज सुबह मैंने जिस संस्थाका उद्घाटन किया है, उसपर वह अपनी कृपाकी वर्षा करे, उसे समुन्नत करे और सफल बनाये।[१]

महात्मा गांधी ने कहा कि मैं आपसे एक बात कहना भूल गया था। श्री बैंकरने[२] मुझे उसकी याद दिलाई है। पहले हमारा इरादा उस समयतक इस तरहके स्कूल खोलनेका नहीं था जबतक कि हमें हमारी जरूरतके लायक शिक्षक न मिल जायें। किन्तु अब हमें श्रीमती कृष्णाबाई और श्रीमती जसलक्ष्मीकी सेवाएँ सुलभ हो गई हैं। श्रीमती कृष्णाबाई इलाहाबादमें क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूलकी प्रधानाध्यापिका थीं और जब मैं वहाँ गया था तब उनसे मिला भी था। उस अवसरपर मैंने उनसे तथा वहाँकी महिला शिक्षिकाओंसे असहयोगके बारेमें बातचीत की थी। और कुमारी कृष्णाबाईने मुझसे कहा था कि में आपके काममें हाथ बँटाने के उद्देश्य से बम्बई आ जानेको तैयार महाराष्ट्रकी हैं और इन्हें इलाहाबादमें रहना पसन्द न था; अपनी शिक्षा के सम्बन्धमें वे अमेरिका हो आई हैं और उन्होंने ऊँची शिक्षा पाई है। वे बम्बई धनोपार्जनको दृष्टिसे नहीं वरन् अपने देशकी सेवा करने आई हैं। कुमारी कृष्णा बाईके लिए अकेले यह काम कर पाना असम्भव था। वे एक मराठी महिला हैं और हमें गुजराती लड़कियोंकी देखभालके लिए किसी व्यक्तिकी जरूरत थी। इस कामके लिए हमें कुमारी जसलक्ष्मी दलपतराम कवि मिल गई हैं। ये बहन अहमदाबादमें महालक्ष्मी ट्रेनिंग कालेज में प्रथम सहायिकाका काम कर रही थीं। इस स्कूलको प्रारम्भ करनेसे पहले ही वे अपने पदको त्याग चुकी थीं और अहमदाबादमें आश्रम में रह रही थीं। यद्यपि वे बम्बई-जैसे बड़े शहरमें रहना नापसन्द करती हैं, फिर भी वे देशके प्रति अपना कर्त्तव्य पूरा करने बम्बई आई हैं। किन्तु उन्हें एक कर्त्तव्य पूरा करना है और वह है गुजराती लड़कियोंकी देखभाल। भारतीय पूरा भरोसा रखकर इस स्कूलमें अपने बच्चे भेज सकते हैं और उन्हें इन दो योग्य महिलाओंको सुपुर्व कर सकते हैं।

इसके बाद तिलक स्वराज्य-कोषके लिए चन्दा किया गया और कुछ आभूषण तथा बहुत-सा धन इकट्ठा हो गया। एक पारसी लड़कीने अपनी सोनेकी चूड़ी दी और एक पारसी सज्जनने एक चेक भेंट किया।

श्री गांधीने कहा, बहुत से लोग मुझसे कहते हैं कि पारसी समाज कोषके लिए कुछ पैसा नहीं दे रहा है। में उन्हें बताना चाहता हूँ कि यह सही नहीं है। मुझे पहले भी उनसे मदद मिल चुकी है, अब भी मिल रही है और मुझे पूरा विश्वास है कि आगे भी मिलेगी।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २३-६-१९२१

  1. सरोजिनी नायडूके बोल चुकनेपर गांधीजीने फिर कुछ शब्द कहे।
  2. शंकरलाल घेलाभाई बैंकर।