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१२५. संदेश : बम्बई में आयोजित स्त्रियोंकी सभाको[१]

२२ जून, १९२१

श्रीमती मोतीवालाने महात्मा गांधीका एक सन्देश पढ़ा जिसमें उन्होंने लिखा था कि यदि मैं सभामें शरीक न हो सकूं तो आप लोग मुझे क्षमा कर दें। मैं कई बार अपनी बम्बईकी बहनोंसे मिल चुका हूँ और उनसे बार-बार कहने को मेरे पास क्या है? मेरा मन भारतको आजाद और निष्कलंक देखने को छटपटा रहा है। और ईश्वरसे मेरी यही प्रार्थना है कि भारतीय स्त्रियोंमें पवित्रता, निर्भीकता और सादगीका संचार हो। स्त्रियोंके आशीर्वाद के बिना इस देशमें धर्मराज्य स्थापित नहीं किया जा सकता। हमें इसी सालके अन्दर विदेशी वस्त्रोंका इस्तेमाल छोड़ देना है और इसके लिए मुझे अपनी बहनों की मददकी जरूरत है। स्त्रियाँ चरखा चलाना और खद्दर पहनना अपना धार्मिक कर्तव्य समझें। इसके लिए चाहे उन्हें बहुत असुविधा क्यों न उठानी पड़े। उन्हें केवल वही वस्त्र पहनने चाहिए जो उनके अपने हाथके बनाये हुए हों। उन्हें विदेशी वस्त्रोंको इस्तेमाल करना पाप समझना चाहिए। मिलों में बना कपड़ा केवल गरीब लोग ही इस्तेमाल करें। मुझे अपने कामके लिए बहुत धनकी जरूरत है और इसके लिए मुझे स्त्रियोंकी मदद चाहिए। यदि वे केवल तिलक स्वराज्य-कोषके लिए समय दे सकें तो मुझे पूरा इतमीनान है कि वे बहुत अधिक धन आसानीसे इकट्ठा कर सकेंगी। मैं अपनी पारसी, हिन्दू और मुसलमान बहनोंको जब इस कामको पूरा करनेमें सचेष्ट पाता हूँ तब मुझे हर्ष होता है।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २३-६-१९२१

  1. यह सभा मारवाड़ी विद्यालय हॉलमें राष्ट्रीय स्त्री-समाजके तत्वावधानमें हुई थी जिसकी अध्यक्षता बेगम रफिया सुलतानाने की थी। इस सभा में अली भाइयोंने भी भाषण दिये। सरोजिनी नायडू तथा अन्य लोगोंने स्वराज्य-कोषके लिए चन्दा इकट्ठा किया।