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भाषण: शिक्षकों के कर्त्तव्यपर


क्योंकि मेरे घरवालों ने सोचा कि इस तरह में ज्यादा पैसा कमाऊँगा। उस समय मेरे मनमें मातृभूमिको सेवा करने का कोई विचार नहीं था। लेकिन बादमें मैंने यह अनुभव किया कि अपने देशकी सेवा करना सबसे अच्छी चीज है। इसलिए मैंने उन सब वस्तुओंको त्याग दिया और अब में आप लोगोंसे भी अपील करता हूँ कि आज देश जो महान् बलिदान कर रहा है उसमें आप भी हाथ बँटायें।

नेक और ईमानदार बनना आप लोगोंका कर्त्तव्य है। आपको चाहिए कि बालकों को नेक, निर्भय और सत्यवादी बननेकी शिक्षा दें। अपने विद्यार्थियोंको ब्रह्मचर्यका पालन करना सिखायें। में भारतमें व्याप्त भ्रष्टाचारसे भयभीत हो उठा हूँ और मुझे आशंका है कि अगर हमेशा यही हालत बनी रही तो हम कभी स्वराज्यके योग्य नहीं बन पायेंगे। इन मामलों में किसी और देशका अनुकरण करना हमारा काम नहीं है। यह अध्यापकों का कर्तव्य है कि वे अपने विद्यार्थियोंको वीर और सत्यवादी बनायें। हम जिस स्वराज्यकी स्थापना करने जा रहे हैं वह सत्य और न्यायपर आधारित होगा, अन्यायपर नहीं। हम धर्मराज्यकी स्थापना करने जा रहे हैं और ऐसा हम बल-पूर्वक अथवा किसी अन्य उपायसे नहीं करना चाहते। जब हजारों मुसलमान मारनेके लिए नहीं बल्कि मरनेके लिए तैयार रहेंगे, जब हजारों हिन्दू दूसरोंके प्राण लेनेके लिए नहीं बल्कि अपने प्राणोंकी बलि देनेके लिए तैयार होंगे तब आप यह निश्चित मान सकते हैं कि स्वराज्य आपका है। खिलाफतके प्रश्नके साथ-साथ गो-रक्षाका प्रश्न भी हल हो जायेगा।

श्री गांधीने विद्यार्थियोंसे एक बार फिर ब्रह्मचर्यंका पालन करनेका अनुरोध किया, क्योंकि इसपर जितना जोर हिन्दू धर्म में दिया गया है उतना किसी और धर्ममें नहीं दिया गया। भारतीयोंको भ्रष्टाचार भी छोड़ देना चाहिए। हमें अपनी पत्नीके अतिरिक्त सभी स्त्रियोंको माँ, बेटी अथवा बहन समझना चाहिए। जब में इस देशमें इतना पाप होते देखता हूँ तब में इस बातकी ओरसे निराश हो जाता हूँ कि हमारा स्वराज्य धर्मपर आधारित हो सकेगा। अगर हम धर्मराज्य स्थापित करनेके लिए कृत-संकल्प हों तो हमारे अध्यापकोंको तुरन्त इस बातका एहसास हो जाना चाहिए कि उन्हें विद्यार्थियों को उचित भावनाके साथ प्रशिक्षित करना है। जब हम लड़के और लड़कियोंके मस्तिष्क में सही बातें उतार सकेंगे तभी हमारे देशको अच्छे नागरिक प्राप्त हो सकेंगे। अपने धर्मराज्य के लिए हम सत्य और न्यायमें निष्ठा रखनेवाले पुरुष और स्त्री चाहते हैं। लेकिन अगर अध्यापक अपने उच्चाधिकारियोंसे झूठ बोलते हैं तो वे बालकोंसे सच बोलने की कैसे अपेक्षा कर सकते हैं। विद्यार्थी अपने अध्यापकोंसे ही सबक सीखेंगे। इसलिए उन्हें व्यक्तिगत उदाहरणके द्वारा सिखाना होगा। हमें स्वयंको अपने पापोंसे मुक्त करना चाहिए, हमें उन वस्तुओंसे मुक्त होना चाहिए और अनाचारका गुलाम नहीं बनना चाहिए।

जबतक भारतके स्त्री-पुरुष देशके प्रति अपने कर्त्तव्यको नहीं पहचानते और खद्दरके स्थानपर महीन विदेशी कपड़ेका प्रयोग करते रहेंगे तबतक वे स्वराज्य प्राप्त