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भाषण: बम्बईके स्वागत समारोहमें


तक दोनों अपने-अपने धर्मोसे प्यार नहीं करते और ठीक तरहसे उनका पालन नहीं करते तबतक इन दोनोंके बीच पूर्ण एकता होना असम्भव है। यह अभिप्रेत नहीं है कि अपने-अपने धर्मोको त्यागकर हिन्दू मुसलमान और मुसलमान हिन्दू बन जायें।

दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आपको अपने दलित वर्गों, ढेढ़ों और भंगियोंका उत्थान करना है। जबतक आप इन्हें दलित रखेंगे तबतक समाजके उच्च वर्ग स्वयं भी ढेढ़ और भंगी बने रहेंगे। क्योंकि उन्हें नीचे रखकर आप स्वयं अपनेको उनके नीचे गिराते हैं। में आपसे भंगियोंके साथ रोटी-बेटीका व्यवहार करनेके लिए नहीं कहता। मैं तो सिर्फ यही चाहता हूँ कि आप इनके साथ भाइयोंका, मानवोंका-सा व्यवहार करें। जबतक ये लोग दलित रहेंगे तबतक स्वराज्य प्राप्त करना असम्भव है।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २७-६-१९२१

१२८. भाषण : बम्बईके स्वागत समारोहमें[१]

[ २६ जून, १९२१ के पूर्व ]

दूसरे स्थानकी तो मैं नहीं जानता परन्तु यहाँ मैं पैसेके लोभसे नहीं आया हूँ। आपके आमन्त्रणको मैंने तुरन्त स्वीकार कर लिया क्योंकि अस्पृश्य भाइयोंकी विडम्बनाओंसे मैं परिचित हूँ। आपके दुःखको मैं जानता हूँ। इस वर्ष मैं हिन्दू धर्मके कलंक―अस्पृश्यता को दूर करनेके लिए जुटा हुआ हूँ। स्वराज्यमें अनन्त शक्ति है, अगर उसमें स्वराज्य अस्पृश्यता दूर नहीं होती तो वह धर्मराज्य― स्वराज्य―नहीं है। गन्दा, मैला, दुराचारी अथवा चाहे जैसा भी व्यक्ति धर्मके सिद्धान्तसे तो अस्पृश्य नहीं माना जाता, दयाके सिद्धान्तसे भी कदापि नहीं। अस्पृश्यसे दूषित होनेके सिद्धान्तको मैं हिन्दू धर्मका अंग नहीं मानता। जिसमें सत्य और अहिंसा न हो वह धर्म नहीं है। उच्च कौम आपको बिना किसी शर्त के स्पृश्य मानने लगे उसके लिए आपका क्या कर्त्तव्य है? किसीने कहा कि आप शुद्धि कीजिए लेकिन आपमें किसी प्रकारकी अशुद्धि हो ही नहीं सकती। मद्य और मांसका सेवन करनेवाले को तो कोई अस्पृश्य नहीं मानता। फिर भी आपको मद्यमांस आदिका त्याग करना चाहिए। कोई ब्राह्मण अगर मद्यमांसका सेवन करता हो तो मैं उसके यहाँ न जाऊँ, आपसे भी मैं कमसे कम इतनी स्वच्छता- की अपेक्षा अवश्य करता हूँ। मेरी खातिर ही नहीं, स्वयं अपनी खातिर भी आपको स्वच्छता [ के नियमों ] का पालन करना चाहिए।

ब्राह्मण चाहे जो करे उससे आपको क्या? आप स्वयं खुशहाल बनें। एकने मुझसे पूछा कि मैं आपको असहयोग क्यों नहीं सिखाता? अब यदि स्वयं हम आपसमें अत्याचार करते हों तो हम सरकारको अत्याचारी कैसे कह सकते हैं? असहयोगका बहाना

  1. अन्त्यजों द्वारा आयोजित इस स्वागत समारोहमें गांधीजीको अभिनन्दन पत्र भेंट किया गया था।