२९४ सम्पूर्ण गाधी वाङ्मय अली वन्धुलोकी नाक रखनेके लिए किसी बातको छिपानेकी कोई जरूरत नही थी। सबसे पहले मै प्रत्येक व्यक्तिको, जिसमे परमश्रेष्ठ वाइसराय भी शामिल है, यह विश्वास दिला देना चाहता हूँ कि यदि मैं कभी सत्यसे वाल-भर भी डिग गया तो मैं उनसे तथा विश्वसे अवश्य क्षमा याचना करूँगा। सत्यको मै अपने प्रभावके मुकावले, चाहे वह मेरे देशमे हो अथवा किसी और जगह, अधिक महत्त्व देता हूँ। मैने लॉर्ड रीडिंग- पर वादाखिलाफीका आरोप लगाया हो यह मुझे स्मरण नहीं है। तीव्र गतिसे होनेवाली बातचीत मानसिक चलचित्रके समान होती है। मस्तिष्क शब्द-रूपी चित्रोको, जितनी तेजी- से वे आते है, ग्रहण करता जाता है, पर उसे वह पूरेका-पूरा अर्थात् ठीक उसी क्रममें स्मृतिमे नही रख पाता। हो सकता है कि विभिन्न मुलाकातोको हम दोनोके मनपर अलग-अलग छाप पड़ी हो। मेरे मनपर जो छाप पड़ी उसे तो मैंने अधिकसे-अधिक सही रूपमे प्रस्तुत कर दिया है, और गोपनीयताका यथासम्भव उल्लघन किये विना किया है। पर यह मै बिलकुल स्पष्ट देख रहा हूँ कि जनताके सामने चित्र बिलकुल धुंधला है । वह मुलाकातोके पर्याप्त पूर्ण विवरणके बिना सन्तुष्ट नहीं हो सकती। मै उसकी जिज्ञासा पूरी करने के लिए उत्सुक हूँ। इस उद्देश्यसे मैने परमश्रेष्ठ वाइसराय महोदयके साथ पत्रव्यवहार भी शुरू कर दिया है और उनसे कहा है कि या तो हम दोनोकी सहमतिसे एक विवरण प्रकाशित किया जाये अथवा मुझे उसे गोपनीय रखनेके दायित्वसे मुक्त कर दिया जाये। जहांतक मेरा सम्बन्ध है, मेरी कोई बात ऐसी नहीं है जिसे गोपनीय रखनेकी जरूरत हो। पर मै यह स्वीकार करता हूं कि वाइसरायकी स्थिति मुझ जैसे सार्वजनिक कार्यकर्तासे बहुत भिन्न है। मै उन लोगोसे, जो पूरी बात जाननेको उत्सुक है, थोडा सन्न रखनेको कहूंगा। इस बीच मुझसे जो एक गम्भीर भूल हुई दिखाई देती है, मैं उसे स्वीकार करना चाहता हूँ। जो विज्ञप्ति प्रकाशित की जानेवाली थी, मुझे कहना चाहिए था कि वह मुझे दिखा दी जाये। पर मै पुन. शिमला जाकर अपनी यात्रामे और विघ्न नही डालना चाहता था, और मुझे इस बातका पूरा विश्वास था कि पूरी वात अच्छे ढगसे तथा दोनो पक्षोके लिए सम्मान- जनक रूपसे सम्पन्न हो जायेगी। मुझे तो बिना किसी दुर्भावनाके भी गलतफहमियाँ और उससे भी बुरी बाते होनेका इतना सारा अनुभव था, इसलिए मुझे इस ओर ज्यादा चौकसी बरतनी चाहिए थी। पर वैसा न हो सका । फिर भी मुझे पूरा विश्वास है कि यद्यपि इस विवादके कारण काफी कटुता उत्पन्न हो गई है, तथापि अन्तमे यही सिद्ध होगा कि इससे देशका अनिष्ट होनेके बजाय भला ही हुआ है। इस वीच मै नेक मौलाना अव्दुल बारीके इस कथनको स्वीकार करता हूँ कि असहयोगियोके उत्साहमे गिरावट आनेकी शक्लमें जो हानि हुई है वह तो प्रत्यक्ष है, पर लाभ भविष्यके गर्भमे है। खैर, देखे आगे क्या होता है। पारसियोंको उदारता प्रसिद्ध तिजोरी-निर्माता श्री गोदरेजने तिलक स्वराज्य-कोषके लिए तीन लाख रुपये देनेकी घोषणा करके चन्देकी अन्य सब राशियोको फीका कर दिया जनिक कामोके लिए दिये गये उनके चन्दे अभीतक गुप्त हुआ करते थे। पर इस बार । सार्व