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सम्पूर्ण गाधी वाइमय

दम | चुनाव स्वभावत आनुपातिक प्रतिनिधित्वके आधारपर हुआ। नाम देकर पाठकोकों मैं कष्ट न देता यदि इस चुनावसे कुछ सीख न मिलती होती। पाठकगण यह देखेंगे कि तीन मुसलमान चुने गये है और वे सूचीमे सर्वप्रथम है, जिससे पता चलता है कि मतदाता उन्हे चुननेके लिए कंतसकल्प थे। सख्याकी दृष्टिसे दोसे अधिक नही चुने जाने

चाहिए थे, पर मतदाताओने बुद्धिमानीसे सब मुसछमान उम्मीदवारोको चुननेका निर्णय किया। उसके बाद वे कमसे-कम एक महिलाकों अवश्य चुनना चाहते थे, अत उनके बाद श्रीमती अनसूयाबेन आती है। छेकिन इस चुनावमें सबसे अधिक मार्ककी बात यह है कि जहाँ सब अच्छे कार्यकर्त्ता चुन लिये गये वहाँ बहुतसे उतने ही अच्छे और योग्य कार्यकर्ता चुपचाप अलग रह गये। वे चुनावमे खडे नहीं हुए। आत्म-विक्ोपनकी इस

भावनाकी, जिस किसीसे वह सम्बन्ध रखती हो, मै तारीफ करता हूँ। कार्यकर्त्ताओमे सम्मानके पदोके लिए आपसमें कशमकश नहीं होनी चाहिए। सबका ध्येय सर्वाधिक योग्य कार्यकर्ता बनना होना चाहिए। पर सबका सम्मानके पदोपर चुना जाना सम्भव

नही है, खास तौरसे जब यदि उन पदोके साथ भारी जिम्मेदारी भी जुडी हुई हो। सबसे अच्छा तरीका यह है कि हर व्यक्ति चुनावसे अलग रहकर दूसरोको चुने जाते

दे। इसी तरह कदुता, अस्वस्थ प्रतिद्वन्द्रिति तथा विद्वेषकी भावनासे बचना सम्भव है। चाहे कोई व्यक्ति कभी भी कोई पद न ग्रहण करे, फिर भी उसके लिए सबसे उत्तम सेवा कर सकता निश्चय ही सम्भव है। सच तो यह हैकि सम्पूर्ण विश्वमें सबसे

अच्छे कार्यकर्त्ता वही सिद्ध हुए हैजो सामान्यत सबसे अधिक चुप और शान्त रहते है। मुस्लिस प्रतिनिधित्व लखनऊ-समझौतेपर कार्य-समितिके परामर्शात्मक प्रस्तावके सम्बन्धमे बहुत छोगोको

शिकायत है। नये सविधानमे मुस्लिम प्रतिनिधित्वसे सम्बन्ध रखनेवाला एक खण्ड वह है जो अल्पसख्यकोके अधिकारोके बारेमें है। चूँकि कार्य-समितिका ध्यान इस बातकी ओर आक्ृृष्ट किया गया कि मुसलमान अपने प्रतिनिधित्वके वारेमे परेशान हो रहे है, और वे काग्रेस द्वारा लखनऊ-समझौतेपर अमरू चाहते है, अत उस दिशामे निर्देश करना

युक्तिसगत समझा गया। इसमे सन्देह नहीं कि हम छोगोके अन्दर फूट डालनेकी कोशिश की जा रही है। मुसलूमानोका आना शुरू ही हुआ है। इसलिए प्रत्येक हिन्दूका कत्तंव्य है कि वह उनको काग्रेसमे शामिल होनेके लिए हर तरहका उचित प्रोत्साहन दे। काग्रेसको समस्त जातियो तथा धर्मोका सामान्य मिलन-स्थरू होना चाहिए। जहाँ

अनुनय-विनयके बावजूद मुसलमान बिलकुल ही आगे नही आते, वहाँ उम्मीदवारोके अभावके कारण स्थान खाली रखे जा सकते है, अथवा जबतक अनुकूल मुस्लिम

उम्मीदवार नही मिल जाते, तबतक के लिए उन स्थानोको दूसरो द्वारा भरा जा सकता है। कुछ मित्रोका कहना है कि इस समय हमे किसी जाति विशेषके अधिकारोके बारेमे

नही बल्कि केवल कार्यक्षमताके बारेमे सोचना चाहिए। इसमे सन्देह नहीं कि कार्यक्षमता प्रशसनीय चीज है, लेकिन यह भी हो सकता है कि हम उसके अन्वपुजारी वन जाये, जैसा कि हमारे अग्नेज मित्र बन गये हैं। एकता कार्यक्षमतासे अधिक महत्त्वपूर्ण है, और हमारे लिए एकता ही कार्यक्षमता है। हाँ, एकताके नामपर हमे एक वस्ठुका