पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

टिप्पणियाँ २९१ हैं, उन्हें जातीय बड़प्पन जताना चाहते हैं।" मैं लॉर्ड रीडिंगको यह बता देना चाहता हूँ कि उनका यह कथन औसत भारतीयके प्रतिदिनके अनुभवसे इतना भिन्न है कि इससे लोगोंके मनमें उनकी निर्णयबुद्धि तथा उनके उद्देश्यकी ईमानदारी-तक के प्रति सन्देह उत्पन्न हो जाना अवश्यम्भावी है। वे अपने कर्मचारियों तथा अधिकारियोंको आचरणके जो प्रमाणपत्र देंगे, उनमें भी लोगोंको यही लगेगा कि वे जान-बूझकर सत्यकी ओरसे आँखें फेर रहे हैं और न्याय नहीं करना चाहते। लोग इस बातमें शककी गुंजाइश भी नहीं मानेंगे और यही समझेंगे, जैसा कि मैं समझता हूँ, कि वाइसराय स्वेच्छासे अपनी आँखें बन्द नहीं किये हैं बल्कि उन्हें सिवा उन चीजोंके, जो नौकर- शाही उन्हें दिखानेको तैयार है, और कोई चीज देखने ही नहीं दी जाती। पाँच सौवीं मंजिलसे तथ्य यह है कि किसी भी वाइसरायके लिए सत्यको देख पाना असम्भव है, क्योंकि सालमें सात महीने वह पहाड़की चोटियोंपर रहता है, और जब वह मैदानमें रहता है तब भी पूर्णत: अलग-सा रहता है। जरा बम्बईके एक ऐसे व्यापारीकी कल्पना कीजिए जो सबसे ऊपरवाली मंजिलसे व्यवसाय संचालन करता है, और जो अपने क्लर्को तथा सेल्समैनोंसे केवल लिफ्टों एवं फोनोंके जरिये उनसे सम्बन्ध रखता है। बम्बईके लोग इस स्थितिसे सन्तुष्ट नहीं हैं। हालाँकि वहाँ सबसे ऊपर और सबसे नीचेकी मंजिलोंके बीच कमसे-कम अनेक मंजिलोंकी ऐसी शृंखला तो है, जिनमें लोग रहते हैं। पर शिमलेमें जो एक बड़ा व्यापार-भवन है उसके तथा मैदानमें रहनेवाले कराहते हुए करोड़ों लोगोंके बीच तो ठोस निर्जीव चट्टान है; और उन अशक्त लोगोंका चीत्कार भी, जब वह मैदानसे उठकर पहाड़की चोटीतक पहुँचता है, तो शून्यमें विलीन हो जाता है। राजकुमार सिद्धार्थको दुनियासे इतना अलग रखा गया कि उन्हें मालूम ही नहीं हो पाया कि दुःख, अभाव तथा मृत्यु क्या चीजें हैं। वे एक ईमानदार नवयुवक थे। पर यदि एक घटना न घटी होती तो संसारको उनका नाम भी मालूम न होने पाता। वे अपनी जनतासे अधिक दूर नहीं रहते थे, और उनका जीवन भी वैसा ही था जैसा उनके पिताको प्रजाका। सिद्धार्थ जनतासे मुश्किलसे तीस फुटकी ऊँचाईपर रहते थे, जब कि वाइसराय साढ़े सात हजार फुटकी ऊँचाईपर रहते हैं। फिर वाइसराय जनताको आशाओं तथा आशंकाओंको नहीं समझ पाते इसमें उनका दोष नहीं है। उन्होंने यदि स्वेच्छासे अपनेको जनतासे विच्छिन्न रखा हो तो बात अलग है। जबतक वे शारीरिक एवं मानसिक रूपसे शिमला-वास करते रहेंगे तबतक उन्हें सत्यसे अनभिज्ञ रखा जायेगा जैसे कि सिद्धार्थको रखा गया था। पर एक घटना तो उनकी भी आँखोंके सामने उपस्थित है; जैसी उस सुप्रसिद्ध युवक राजकुमारके लिए थी जिसकी विश्व आज बुद्धके रूपमें पूजा करता है। वह घटना है असहयोग । और यदि लॉर्ड रीडिंगकी आँखें तथा कान खुले हैं तो वे शीघ्र ही सत्यको देख-सुन सकते हैं। १. तात्पर्य समुद्रकी सतहसे शिमलेकी ऊँचाईसे है । Gandhi Heritage Portal