पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

टिप्पणियाँ २९३ क्योंकि इससे जिस उद्देश्यका वे पृष्ठपोषण करते हैं, उसका नेतृत्व करनेवालों के अभाव- का खतरा पैदा हो जायेगा। ऐसे संशयवादी यह भूल जाते हैं कि लोकमान्यकी महान् लोकप्रियता तथा प्रभावका कारण उनका जेल जाकर सजा भुगतना ही था। सूलीपर मृत्यु ईसाकी सबसे शानदार उपलब्धि थी। करबलाके मैदानमें इमाम हसनके बलिदान- ने इस्लामको विश्वमें एक शक्ति बना दिया। हरिश्चन्द्रको अनन्त दुःख उठाने के कारण स्मरण किया जाता है। भारत तबतक स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं कर सकता जबतक कि लाखों लोग भयका त्याग नहीं कर देते, और बिना किसी अपराधके स्वेच्छासे जेल जानेको तैयार नहीं हो जाते। यदि लाखों नहीं तैयार होते तो कमसे-कम हजारोंको तो स्वतन्त्रता पानेके लिए वास्तवमें जेल जाना ही चाहिए। असहयोगका ध्येय राष्ट्र के सच्चे शौर्यको जाग्रत करना है। यदि हमें स्वतन्त्र होना है तो मरते दमतक कष्टोंका मुकाबला करने के लिए तैयार रहना चाहिए। जो अपनेको बचायेगा उसका अवश्य नाश होना है। क्या हम अपनी सफाई दें? यदि यह सत्य है कि इस सरकारकी इच्छाका न्यायोचित विरोध करने के लिए हमें भारतकी जेलोंको भर देना चाहिए तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि हम किसी ब्रिटिश कानूनी अदालतके समक्ष अपनी सफाई नहीं दे सकते; और वकील नियुक्त करनेका तो सवाल ही नहीं उठता। मैं जानता हूँ कि जटिल मुकदमे भी हो सकते हैं, जैसे सावरकर बन्धुओंका मुकदमा। यदि मुझे यह मालूम हो कि वे असह- योगी हैं, और असहयोगमें विश्वास करते है तो मुझे उन्हें यह सलाह देने में जरा भी हिचक न होगी कि चाहे उनका पक्ष पूरी तरहसे सही भी हो, फिर भी उन्हें जिन लोगोंने उनपर अत्याचार किया उनके विरुद्ध क्षतिपूर्ति के लिए कोई भी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। यद्यपि ऐसे मुकदमोंमें सफाई न देनेका मुख्य कारण ब्रिटिश अदालतों- का बहिष्कार करनेसे सम्बन्धित प्रस्ताव ही होगा, तथापि कष्टसहनकी दृष्टिसे भी वह उतना ही आवश्यक है। फिर अली बन्धुओंकी सफाईके बारेमें शिमलामें वाइसराय महोदयसे मेरी भेंट तथा अली बन्धुओंकी सफाईने जितना समय नष्ट किया है, उतना किसी और चीजने नहीं। मेरे सामने जो बहुत-से पत्र है, उनमें से केवल एकके बारेमें मैं यहाँ जिक्र करना चाहता हूँ। एक सम्मानित मित्र,' जिन्हें ईमानदारी तथा सच्चे व्यवहारसे सम्बन्धित मेरी ख्यातिका बड़ा ख्याल है, लिखते हैं कि शिमलामें यह चर्चा हो रही है कि मैंने वाइसरायके साथ अन्याय किया है, उनपर लगभग वादाखिलाफीका आरोप लगाया है, और यह कहकर कि सफाई नहीं दी गई है, सम्भवतः मैं अनजाने ही सत्यसे डिग गया हूँ। मैं आज भी कहता हूँ कि सफाई सरकार- को नहीं दी गई है। यदि ऐसी बात होती तो उसकी शब्दावलीमें ही इस बातको स्पष्ट कर देने में मैं कभी न हिचकता। उसे अस्पष्ट रखना मेरा उद्देश्य नहीं था। १. स्पष्टतः तात्पर्य पण्डित मदनमोहन मालवीयसे है; देखिए पिछला शीर्षक । Gandhi Heritage Portal