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भाषाण: ताल्लुका परिषद्,हालोलमें

हमें कोई पछाड़ नहीं सकता। हालोलकी स्वदेशी अर्थात् हालोलमें ही बनी हुई । हिन्दु-स्तानके बाकी भागोंमें बनी चीजें हालोलके लिए हराम होनी चाहिए। हम सबको स्वावलम्बी बनना है, सबको सर्वोपरि बननेका प्रयत्न करना है। बस, इस सम्बन्धमें जब हम परस्पर एक-दूसरेके साथ होड़ करेंगे तभी हमें स्वराज्य मिलेगा। यही स्वराज्यकी चाबी है।

इस शहरकी सजावट मुझसे सहन नहीं होती। सजावटमें एक इंच-भर विदेशी कपड़ा नहीं होना चाहिए। उसके बदले यहाँ तो स्थान-स्थानपर विदेशी कपड़े लटके हुए हैं। सब ध्वजा-पताकाएँ विदेशी हैं। उन सबका रंग विदेशी है। इसलिए इस सजावटको चिथड़ोंका प्रदर्शन-भर समझना चाहिए। हम सजावट तो मेहमानकी खातिर करते हैं,तो फिर मेरे विवेककी खातिर, मेरी मर्यादाकी खातिर भी मुझे जो अच्छा लगता हो वही आपको करना चाहिए था । यदि हम सोच-समझकर हर चीज करेंगे तभी हमें आगे जाकर स्वराज्य मिलेगा। यहां जो स्वयंसेवक घूमते-फिरते दिखाई देते हैं वे जीनके बने अंग्रेजी ढंगके कोट-पतलून पहने हैं। स्वराज्यके स्वयंसेवकोंके पास जीन कैसे ? आप नई खादी के लिए अगर पैसे खर्च नहीं कर सकते तो मैं आपको इस जीनके बदले खादी देनेको तैयार हूँ। अगर आपको ऐसा लगता हो कि आप खादीके पैसे मुझसे कैसे ले सकते हैं तो मैं आपसे लंगोट पहनकर स्वयंसेवकी करनेके लिए कहूँगा । अंग्रेजों-जैसे वस्त्र पहनकर ही सेवा हो सकती हो, सो बात नहीं। लोगोंपर आपके प्रेमका,आपके सद्व्यवहारका असर पड़ेगा। यदि आप विलायती पतलून पहनकर लोगोंपर प्रभाव डालना चाहें तो [ बेहतर होगा कि ] आप उसका त्याग करें। स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए निकले हुए भारतीयोंके रूपमें अपने सम्मानकी खातिर भी इस पोशाकका त्याग कर देना चाहिए । मैं तो स्वयंसेवकोंको प्रतिदिन दो घंटे चरखा चलानेकी सलाह दूंगा । जब आप अपने हाथसे कते सूतके कपड़े बुनवाकर पहनेंगे तभी आप सच्चे स्वयं-सेवक बनेंगे।

हमारी स्वराज्यकी सेनामें जितना काम लड़के-लड़कियाँ करेंगे उतना पुरुष नहीं कर सकेंगे । उनमें धूर्तता, पाखण्ड और मद भरा हुआ है। वह चला जाये तो आज ही स्वराज्य है। उनमें ज्यादा होनेपर भी हममें निर्दोषता होनी चाहिए, मौलाना शौकत अली' जैसी ! इस मनुष्यका मन बालक-जैसा स्वच्छ और कोमल है। वे किसीका बुरा नहीं चाहते। उन्हें डर सिर्फ खुदाका है, ईश्वरका है। उनसे आप निर्दोषता सीखें। मैंने अभ्यासपूर्वक निर्दोषताका विकास किया है। मैंने कंकर-कंकर करके बाँध बांधा है। मेरा सरोवर बूंद-बूंद करके भरा गया है तथापि वह अधूरा है। मौलाना शौकत-अलीने तो अनेक प्रकारके ऐशो-आरामका उपभोग किया है। लेकिन फिर भी उनमें इतनी ताकत है कि वे सूलीपर चढ़ सकते हैं। मेरा तो भोग-विलास खादी है। मेरे शरीरसे रेशम छुआना मुझपर अत्याचार करनेके समान है। जब कि मलमल और रेशम

१. १८७३-१९३८; राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता । मौलाना मुहम्मद अलीके बड़े भाई । उन्होंने खिलाफत आन्दोलन में प्रमुख भाग लिया था ।