पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३०० सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय जैसी स्थिति है, उससे मालूम होता है कि बहुत-से प्रान्त ऐसे होंगे जो ३० जून तक अपने लिए निर्धारित रकमसे बहुत-कम एकत्र कर पायेंगे । अतः उनसे यह अवश्य उम्मीदकी जायेगी कि वे कमसे-कम कांग्रेस महासमितिकी बैठक आरम्भ होनेतक अपना संग्रह-कार्य जारी रखें। [अंग्रेजीसे [ यंग इंडिया, २९-६-१९२१ १३६. टर्कीका प्रश्न अगर हम अपने मुसलमान भाइयोंके सच्चे शुभेच्छु हैं तो यूरोपमें टर्की राष्ट्रको कुचलनेके लिए जो आन्दोलन चल रहा है, उसके खिलाफ हमें मुसलमान भाइयोंके प्रति सहानुभूति होनी चाहिए। यह बड़े खेदकी बात है कि ब्रिटिश सरकार लुके-छिपे या खुले आम आन्दोलनका नेतृत्व कर रही है। हिन्दुओंको इस्लामी एकताके आन्दोलनसे भयभीत नहीं होना चाहिए। वह भारत या हिन्दुओंके खिलाफ नहीं है और न उसे ऐसा होने की जरूरत है। मुसलमानोंको हर मुसलमान राज्यका शुभेच्छु होना चाहिए और यदि कोई मुसलमान देश अकारण मुसीबतमें पड़ जाये तो उसकी मदद भी करनी चाहिए। और जहाँतक हिन्दुओंका सवाल है, यदि वे मुसलमानोंके सच्चे दोस्त हैं तो उनकी भावनाओंसे सहानुभूति होनी चाहिए। अतः हमें चाहिए कि हम अपने उन मुसलमान भाइयोंकी मदद करें, जो यूरोपमें तुर्की साम्राज्यको नष्ट होनेसे बचाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। यदि मुसलमानोंको इस बातका थोड़ा भी संकेत मिला हो कि ब्रिटिश सरकार अंकाराकी तुर्की सरकारके खिलाफ यूनानियोंके साथ खुल्लमखुल्ला मिल सकती है, और वे इससे सशंकित हो उठे हों तो इससे हिन्दुओंको अपना सन्तुलन नहीं खोना चाहिए । यदि ब्रिटेन ऐसे पागलपनपर उतारू हो जाता है तो टर्कीके खिलाफ ब्रिटिश सरकारकी किसी भी ऐसी योजनामें भारत साथ नहीं दे सकता। ऐसा करना इस्लामके खिलाफ युद्ध छेड़नेके समान होगा। इंग्लैंड अपना मार्ग चुननेको स्वतन्त्र है । हिन्दू और मुसलमान अब जाग गये हैं। वह अब उन्हें गुलाम बनाकर नहीं रख सकता। यदि भारतको साम्राज्यके दूसरे सदस्योंकी बराबरीका दर्जा पाना है तो उसके मतकी शक्ति किसी भी अन्य सदस्यसे कहीं ज्यादा होगी। स्वतन्त्र राष्ट्र-मण्डलमें जैसे हर सदस्यका यह कर्तव्य है कि जबतक और सदस्य कुछ सर्वस्वीकृत सिद्धान्तोंका पालन कर रहे हैं तबतक वह उसमें शामिल रहे। वैसे ही उसे यह अधिकार भी है कि यदि दूसरे सदस्य गलत रास्तेपर चलें तो वह उससे अलग हो जाये। यदि भारत किसी गलत बातके पक्षमें मत दे तो इंग्लैंड- को अन्य सदस्योंकी तरह ही राष्ट्र-मण्डलसे अलग हो जानेका हक है । इस प्रकार जब भारतको अपना उचित पद प्राप्त हो जाये तब सन्तुलनका केन्द्र इंग्लैंडके बजाय भारत हो जायेगा। साम्राज्यके अन्तर्गत स्वराज्यसे मेरा यही मतलब है। किसी भी Gandhi Heritage Portal