पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३३१

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टर्कीका प्रश्न ३०१ मसलेपर विचार-विमर्श करते समय पशु-बलके प्रयोगकी बात कभी भी मनमें नहीं लानी चाहिए। हमें सदा न्याय-बुद्धिका सहारा लेना चाहिए, न कि बलका। इंग्लैंडकी तरह भारतको भी अपना रास्ता चुननेका हक है। आज हम साम्राज्यके अन्तर्गत स्वराज्यकी कोशिश इस उम्मीदसे कर रहे है कि इंग्लैंड अन्तमें सच्चा साबित होगा; और यदि ऐसा नहीं होता तो हम पूर्ण स्वतन्त्रताके लिए लड़ेंगे। किन्तु यदि यह निर्विवाद रूपसे सिद्ध हो जाये कि ब्रिटेन टर्कीको खत्म कर देना चाहता है, तो भारत के लिए एकमात्र विकल्प होगा पूर्ण स्वतन्त्रता। जहाँतक मुसलमानोंका सवाल है यदि टर्कीका अस्तित्व, जैसा वह आज है, खतरेमें पड़ जाये तो उनके लिए आगा-पीछा करनेकी गुंजाइश ही नहीं रह जाती। तब तो यदि उनसे बन पड़ेगा तो वे तलवार खींच लेंगे और बहादुर तुर्कोके साथ लड़ते-लड़ते या तो मर मिटेंगे या जीतकर ही दम लेंगे। पर यदि वे भारत सरकारकी नीतिके कारण ब्रिटिश सरकारके खिलाफ युद्धकी घोषणा नहीं कर सकते तो कमसे-कम ऐसी सरकारके प्रति जो अन्यायपूर्वक टर्कीसे युद्ध छेड़ देती है, वफादार होनेसे इनकार तो कर ही सकते है। हिन्दुओंका भी कर्तव्य उतना ही साफ है। यदि अभीतक हम मुसलमानोंसे डरते हैं और उनपर अविश्वास करते है तो हम ब्रिटेनका साथ ही देंगे और इस तरह अपने गुलामीके दिन और बढ़ायेंगे । और यदि हममें इतना साहस और धार्मिक बल है कि हम अपने मुसलमान देश-भाइयोंसे न डरें और यदि हममें इतनी बुद्धिमानी है कि हम उनपर विश्वास करें तो हमें चाहिए कि आजादी हासिल करनेके लिए हम सभी शान्तिपूर्ण और सच्चे तरीकोंसे मुसलमानोंका साथ दें। हिन्दू धर्मके बारेमें मेरी जो कल्पना है, उसके मुताबिक एक हिन्दूके लिए अहिंसात्मक असहयोगके सिवा और कोई रास्ता है ही नहीं। चाहे वह पूर्ण स्वतन्त्रताके लिए हो या साम्राज्यके अन्तर्गत स्वराज्यके लिए। यदि भारत अहिंसाके रहस्य और उसकी अजेय शक्तिको पहचान ले और उसे ग्रहण करे तो उसे आज ही उपनिवेशका दर्जा या पूरी आजादी मिल सकती है। जब वह अहिंसाके मन्त्रको सिद्ध कर लेगा तब वह असह्योगके हर कदमके लिए, जिसमें कर न देना भी शामिल है, तैयार हो जायेगा। आज भारत तैयार नहीं है। किन्तु यदि हम टर्कीके नाशके लिए या अपनी गुलामीके दिन और बढ़ाने के लिए रचे जानेवाले षड्यन्त्रोंको विफल करने के लिए तैयार होना चाहते हैं तो हमें जल्दसे-जल्द प्रबुद्ध अहिंसाकी भावना पैदा करनी होगी। वह अहिंसा निर्बलकी नहीं, बलवानकी अहिंसा होगी जो मारने के बजाय सत्यकी प्रतिष्ठाके लिए खुशी-खुशी मरनेको तैयार रहेगा। [अंग्रेजीसे] यंग इंडिया, २९-६-१९२१ Gandhi Heritage Portal