पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चरखेका सन्देश ३०५ " हैं कि वे विदेशोंसे मँगाये जाने वाले सारे वस्त्रोंकी कमी स्वयं पूरी कर सकते हैं।" हमें यह समझ लेना चाहिए कि मद्रास, महाराष्ट्र और बंगालमें हमारे हजारों करघे जापान और मैनचेस्टरसे आनेवाले महीन सूतसे कपड़ा बुनने में लगे हुए हैं। हमें उनका उपयोग हाथका कता सूत बुनने के लिए ही करना चाहिए। और इस कामके लिए राष्ट्रको बेकारको आडम्बरपूर्ण और महीन, मात्र दिखावेकी मलमलकी ओर अपनी आसक्तिको छोड़ना ही पड़ेगा। मुझे तो ऐसी मलमलकी बुनाईमें कोई कला नहीं दिखाई देती जो शरीरको ढकनेकी बजाय उसे और उघाड़ देती है। कलाके सम्बन्धमें हमें अपने विचार बदलने चाहिए। यदि सामान्य परिस्थितिमें महीन वस्त्रोंकी बुनाई वांछनीय मानी जाये, तो भी आजकी परिस्थिति सामान्य नहीं है। हम आज स्वतन्त्र और आत्म-निर्भर बननेका भगीरथ प्रयत्न कर रहे हैं, इसलिए हमें हाथके कते सूत- का बुना वस्त्र पहनने में ही सन्तोष मानना चाहिए। हमें एक ओर तो फैशन-परस्त लोगोंको मोटे वस्त्रपर सन्तोष करने के लिए कहना चाहिए और दूसरी ओर कताई करनेवालों को ज्यादा महीन और एकसा सूत कातना सिखाना चाहिए। पत्र-लेखकने कहा है कि मिल-मालिकोंको मिलोंमें तैयार वस्त्रोंके दाम घटाने चाहिए। जिन्हें स्वदेशीसे प्रेम है, जब वे लोग खद्दर पहनना अपना कर्तव्य मानने लगेंगे, जब देशमें जरूरतके मुताबिक चरखे चलने लगेंगे और बुनकर लोग हाथका कता सूत इस्तेमाल करने लगेंगे, तब मिल-मालिक कीमतें घटानेपर विवश हो जायेंगे। जिन लोगोंका उद्देश्य अधिकसे-अधिक मुनाफा लेते चले जाना ही हो उनसे देशभक्तिकी अपील करना करीब-करीब बेमतलब लगता है। पत्र-लेखकने कुछ अन्य असंगतियोंका जिक्र किया है। जैसे कि सार्वजनिक समा- रोहोंमें खद्दर और अन्य अवसरोंपर फैशनेबल अंग्रेजी सूट पहनना, और खद्दरधारियों द्वारा सबसे कीमती किस्मके सिगार पीना। ये सभी बातें नये फैशनके चल निकलने पर धीरे-धीरे समाप्त हो जायेंगी। मेरा तो कहना यह है कि जैसे-जैसे विदेशी वस्त्रों- का पूर्ण बहिष्कार करने में हम समर्थ होते जायेंगे, वैसे-वैसे वर्तमान असंगतियोंको भी अवश्यमेव त्यागते जायेंगे और देशकी विशाल जनताके हृदयमें बद्धमूल सादगी और स्वदेशीके आदर्शके अनुरूप अपने राष्ट्रीय जीवनको एक नये साँचे में ढालते जायेंगे। तब हम संसारकी कमजोर जातियोंके शोषणपर आधारित साम्राज्यवादके शिकंजेमें नहीं फंसेंगे और हम नौसेना तथा वायु-सेनाओं द्वारा अभिरक्षित इस भड़कीली भौतिकवादी सभ्यताको स्वीकार करनेपर विवश नहीं होंगे जिसने जनताका शान्तिसे रहना हराम कर रखा है। इसके विपरीत हम उस समय साम्राज्यको परिष्कृत करके एक राष्ट्र- मण्डलका रूप दे देंगे जिसमें सभी राष्ट्र यदि चाहें तो संसारको उन्नतिमें अपना सर्वो- त्तम योगदान करने के लिए और निरे भौतिक बलके बदले वास्तवमें कष्टसहन द्वारा संसारके कमजोर राष्ट्रों या जातियोंको अभय देने के लिए सम्मिलित और सक्रिय हो सकते हैं। असहयोगका उद्देश्य विचार-जगत्में इसी प्रकारकी एक क्रान्ति लाना है। परन्तु ऐसी काया-पलट चरखेकी पूर्ण सफलताके बाद ही सम्भव है। भारत संसारको ऐसा सन्देश देने योग्य तभी बन सकता है जब वह सभी प्रलोभनोंको अपने वशमें २०-२० Gandhi Heritage Portal