पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३३९

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चाय-बागानके एक अधिकारीका पत्र ३०९ विश्वासके साथ कह रहा हूँ। इसलिए मैं आपसे कहता हूँ कि आप अपनी गति- विधियाँ बन्द करें और उनकी भी जो आपकी योजनासे सहानुभूति रखते हैं। और इस तरह यह जो लोगोंपर असम छोड़कर चले जानेका पागलपन सवार हुआ है, उसे रोकें। इस भाग-दौड़के कारण हजारों लोगोंकी जाने जा रही हैं। जरा उनके बारे में भी सोचिए। एक गलतीको दूसरी गलतीसे सुधारा नहीं जा सकता। " में अपने तथा थोड़े-से और बागानोंको छोड़कर बाकी सब बागानों में अपनाये गये तरीकोंके खिलाफ हूँ। मैं यह कबूल करता हूँ कि ये चाय-बागान जहाँ व्यवस्थाका काम बाबू लोगोंके हाथमें है, चाय-उद्योगके लिए कलंक-रूप हैं। पर स्थितिको सुधारनेके लिए सहयोगकी, रचनात्मक आन्दोलनकी, कानून बनानेकी जरूरत है, न कि आपके तरीकोंकी। आपका तरीका यानी साम्यवादी बोल्शेविकोंका तरीका है-- असहयोगकी भावना भी इसमें शामिल है। सत्य किसीको नुकसान नहीं पहुंचाता। मैं अपने इस पत्रकी भाषाके लिए, जो केवल मेरे दिलके भावोंको प्रकट करती है, माफी चाहता हूँ। आपका, "चुप रहनेवाला मानो अपना दोष स्वीकार करता है।" मैं इस पत्रको जैसाका-तैसा छाप रहा हूँ। पत्र लिखनेवाले ने अपना नाम लिखा तो है, पर वे उसे जाहिर नहीं करना चाहते । मैने नेटाल और चम्पारन, दोनों ही जगह इस पत्रके लेखकके समान लोग देखे हैं। वे कुलियोंके शुभेच्छु अवश्य हैं, पर वे यह नहीं महसूस करते कि ऐसा होना केवल उस व्यक्तिके समान होना है जो दयालु होने के नाते ही अपने पशुओंकी अच्छी तरह देखभाल करता है। एक बार अगर यह मंजूर कर लिया जाये कि मनुष्योंके साथ जानवरोंकी तरह बरताव किया जा सकता है तो बहुत-से गोरे मैनेजरोंको पशुओंके प्रति होनेवाली क्रूरताको रोकनेवाली सोसाइटीसे योग्यताके प्रमाणपत्र मिल सकते हैं। मुझे इस बातका पूरा अनुभव है कि मुफ्त दवा, मुफ्त इलाज, मुफ्त आवास तथा मुफ्त चरागाह -ये सब धन्धा चलानेकी चालें है, जिनका उद्देश्य कुलियोंको सदाके लिए दास बनाकर रखना है। यदि उसे पूरी मजदूरी दी जाये और उससे आवास तथा दवाके लिए पैसे लिये जायें तो वह ज्यादा आजाद होगा। निःशुल्क चरागाह तो उसके लिए उतना ही जरूरी है जितना कि साँस लेना। आपको हर बागानमें जो यूरेशियाई बच्चे मिलेंगे, वे वहाँकी मजदूर स्त्रियोंकी दयनीय दशाके साक्षी हैं। यदि मेरा बस चले तो मैं उन सब बागानोंको, जहाँ यूरेशियाई बच्चे पाये जाते हैं, बन्द कर दूं, क्योंकि ये बच्चे भारतीय नारीत्वके प्रति किये गये अप- राधके जीते-जागते प्रमाण हैं। मैं जानता हूँ कि समस्या काफी कठिन है। लेकिन यदि गोरे भारतीय स्त्रियोंके सतीत्वकी उतनी ही इज्जत करने लग जायें जितनी वे अपनी बहनोंकी करते है तो विवाह-सम्बन्धके बाहर इस तरहके यूरेशियाई बच्चे होने ही न Gandhi Heritage Portal