पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३४२

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-- ३१२ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय मददकी आशा रख सकते हैं। इसमें हमारे पास निर्दोष बहनोंके अमूल्य आभूषण आये हैं। कितनी ही बालिकाओंने वे सब आभूषण दे डाले हैं जो उन्हें अत्यन्त प्रिय थे। मैं कितनोंका नाम जानता हूँ लेकिन मैं उन्हें प्रकट नहीं करना चाहता। उन्होंने भी नामसे कोई सरोकार नहीं रखा। स्त्रियोंके धनको उनका नाम प्रकट करके देना मुझे अच्छा ही नहीं लगता। उसमें मैं इतनी ज्यादा पवित्रताका आरोप करता हूँ कि उनका नाम प्रकट करना मुझे पाप-जैसा लगता है। उन्होंने वे आभूषण सिर्फ धर्मार्थ ही दिये हैं। एक विधवा बहनने अपने पास रखे हुए मोती-माणिकके सब आभूषण दिये हैं। उन्हें लेते समय मेरा हृदय भर आया। क्या हम इन आभूषणोंके अधिकारी हैं? विधवा अपने आभूषणोंको दे डालनेकी कभी इच्छा नहीं करती, वह उन्हें संभालकर रखती है। इस बहनको मैंने सावधान किया। मैंने कहा कि अगर ये आभूषण संकोच अथवा शर्मके मारे दिये हों तो वापस ले लो। लेकिन वह क्यों लेती? उसने तो निश्चय कर रखा था। इस तरह मिले पैसेका हम गफलतसे, मूर्खतापूर्ण ढंगसे, बेईमानी- से दुरुपयोग करें तो? तो हमें स्वराज्य तो कभी नहीं मिल सकता, इस तरह हम नरकके भी अधिकारी बनेंगे। इन बहनोंका पुण्य, इनकी श्रद्धा हमें निभा लेगी, हमारी लाज रखेगी तथा हमारे मनोरथको पूर्ण करेगी। पारसियोंकी उदारता पारसी संघर्षमें भाग नहीं ले रहे हैं -ऐसा मैंने जब-जब सुना है तब-तब मुझे हँसी ही आई है। कुल मिलाकर हिन्दुस्तानमें एक लाख पारसी हैं। अगर हम संख्याके हिसाबसे ही विचार करें तो इनसे ४,१२० रुपया, उतने ही सदस्य और ८२४ चरखे मिल जायें तो हम कह सकते हैं कि उन्होंने अपना भाग अदा कर दिया। लेकिन ४,१२० रुपया तो उन्होंने छुटपुट दान द्वारा ही पूरा कर दिया है। अनेक गुमनाम भाइयोंने जो रुपया भेजा है उससे ही यह रकम पूरी हो गई होगी। पारसी रुस्तमजीने ५२,००० रुपया भेजा है, इसे भी मैं उसीमें शामिल करता हूँ और मैं मानता हूँ कि उन सबने मिलकर ४,१२० सदस्य भी अवश्य दिये होंगे। कितने ही पारसी स्वयंसेवक कांग्रेसके सदस्य बनानेका काम कर रहे हैं। वे बम्बईमें अच्छा कार्य कर रहे हैं। पारसी वकीलोंने वकालत भी छोड़ी है। एक सज्जनने अपना विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान प्रजाको देनेका निश्चय किया है। चरखे अवश्य कम चलते हैं, तथापि कुछ-एक पारसी बहनों और भाइयोंने चरखेके कामको हाथमें ले लिया है। वे शराबकी दुकानोंपर धरना भी देते हैं। इसलिए क्या यह कहा जा सकता है कि उन्होंने किसी भी क्षेत्रमें कम काम किया है? उनके समस्त समाचारपत्र इस आन्दोलनके विरुद्ध नहीं हैं। 'साँझ वर्तमान' की सेवा प्रसिद्ध है। भाई भरूचाकी मेहनतसे कौन परिचित नहीं है ? पारसी बहनें पर्याप्त संख्यामें जो काम कर रही है उसका विवरण तो मैं किसी अन्य स्थानपर दूंगा लेकिन उनमें से एकका नाम दिये बिना बात नहीं बन सकती। भारतके पितामहकी पौत्री तनतोड काम कर रही हैं। वे पूरी तरह खादीकी पोशाक ही पहनती है। यदि पारसी समाजने इतना ही किया होता तो भी हमने उनका उपकार माना होता, उनकी ओर हमने अँगुली न उठाई होती। Gandhi Heritage Portal