पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३५९

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भाषण : बम्बईकी सार्वजनिक सभामें का पूर्ण बहिष्कार करके लोकमान्यकी पुण्यतिथि जितने अच्छे रूपमें मना सकते हैं, उससे अच्छे रूपकी कल्पना मैं नहीं कर सकता। [ अंग्रेजीसे] बॉम्बे क्रॉनिकल, २-७-१९२१ १५१. भाषण : बम्बईको सार्वजनिक सभामें' शनिवार, २ जुलाई, १९२१ अब आप मुझसे पैसेकी बात नहीं सुनेंगे। अब तो इसीपर विचार करना है कि हमें आगे क्या करना है। पैसा आये तो कोई हर्ज नहीं। तिलक महाराजके नामपर एक करोड़ तो क्या दस करोड़ भी न्यौछावर करें तो यह कोई बड़ी बात न होगी। स्वराज्यके लिए आवश्यकता पड़े तो दस करोड़ भी खर्च करें, लेकिन दस करोड़की जरूरत पड़ेगी ही नहीं। आवश्यकतासे अधिक एक पाई भी खर्च न करनेवाले व्यक्तिको व्यवहारकुशल कहा जाता है। अब तो आप एक ही बातपर विचार करें। पहली अगस्तको तिलक महाराजकी पुण्यतिथि है, उस दिन हमें क्या करना चाहिए? तिलक महाराजका जो मन्त्र था उससे आपको मुग्ध होना चाहिए। उनकी विद्वत्ता अथवा मधुर वाणीसे नहीं बल्कि उनके कार्यसे, यज्ञसे, स्वार्थ-त्यागसे आपको मोहित होना चाहिए। उनकी जो हार्दिक इच्छा थी, जिसके लिए उन्होंने अपने प्राण उत्सर्ग किये, जिसके लिए उन्होंने कष्ट सहे, आपको वह कार्य पूरा करना चाहिए। उनका इससे बढ़कर और कोई अच्छा स्मारक हो ही नहीं सकता। आप अरबों रुपया केवल इकट्ठा करें, इसकी अपेक्षा आप एक भी पाई इकट्ठी किये बिना स्वराज्य प्राप्त करें तो वह बेहतर होगा। मुझे दृढ़ विश्वास है कि आप अवश्य ऐसा करेंगे। लेकिन जबतक आप स्वराज्यका विचार नहीं करते तबतक कुछ नहीं हो सकता । आपको विदेशी कपड़ेका विचार करना ही होगा। इसपर कोई आपकी हत्या नहीं कर देगा, आपको सिर्फ अपने दिलको जरा समझाना पड़ेगा, जैसे बालकोंके गलेमें कड़वी दवाका चूंट उतारना पड़ता है उसी तरह बहनोंको भी अपने गलेमें यह चूंट उतारना चाहिए। आप पहली अगस्तकी राह न देखें; बल्कि कल ही अपने सन्दूक, शरीर और समझकी जाँच कर लें। विदेशी कपड़ा हमारी गुलामी है। आपको गुलामी छोड़ देनी चाहिए। व्यापारियोंको तो अवश्य ही छोड़ देनी चाहिए। तिलक महाराजको गाली देकर अगर कोई पैसा दे तो वह मैं कैसे लूं, मैं अगर ले भी लूं तो महाराष्ट्र तो मेरा सिर ही काट ले। हम तिलक महाराजका सच्चा स्मारक बनाना चाहते हैं तो सबको स्वदेशी १. यह सभा वम्बई कमीशन एजेन्टस एसोसिएशन और लिंगायत कमीशन एजेन्टस एसोसिएशनके संयुक्त तत्त्वावधानमें हुई थी। इनकी ओरसे तिलक स्वराज्य-कोषके लिए गांधीजीको ५,००१ रुपये भेंट किये गये थे। २. " स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।" Gandhi Heritage Portal