पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३६३

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विदेशी मालका बहिष्कार कैसे हो ३३३ तिलक स्वराज्य-कोषमें चन्दा दिया ही नहीं है। मैं आप लोगोंसे प्रार्थना करता हूँ कि अगर आप अस्पृश्यताको नहीं छोड़ते तो भी आप सुधारोंके कामके लिए पैसेकी मदद तो दे ही सकते हैं। कितने ही वैष्णवोंने तो जो पैसा दिया है सो यह कहकर दिया है कि वह इसी कामके लिए खर्च किया जाये। इसके अतिरिक्त अन्त्यजों सम्बन्धी मेरे विचार आपको पसन्द न हों तो भी आप स्वदेशी आन्दोलनके लिए, अकालके लिए, स्कूलोंके लिए तो पैसा दे ही सकते हैं। लेकिन मेरी मान्यता तो ऐसी है कि अन्त्यजोंकी उन्नतिकी बातका विरोध आप करेंगे ही नहीं। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप दया धर्ममें अपने विश्वासके प्रतीक रूपमें पैसा इसी शर्त के साथ दें कि वह अन्त्यजोंकी उन्नतिके कार्यों के लिए खर्च किया जाये। [गुजरातीसे] नवजीवन, ३-७-१९२१ १५३. विदेशी मालका बहिष्कार कैसे हो' इस समय जब कि काफी समय बीत गया है, यह बतानेकी आवश्यकता नहीं कि विदेशी वस्त्रोंका प्रस्तावित बहिष्कार प्रतिहिंसात्मक कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय जीवनके लिए उतनी ही आवश्यक है जितनी कि जीवनके लिए साँस । इसलिए बहिष्कार जितनी जल्दी अमलमें लाया जायेगा, देशका उतना ही अधिक कल्याण होगा। इसके बिना न तो स्वराज्यकी स्थापना की जा सकती है और न स्थापनाके बाद उसे कायम ही रखा जा सकता है। इसलिए यह जानना अत्यन्त आवश्यक है कि अगस्तकी पहली तारीखसे भी पहले इसपर कैसे अमल किया जाये। बहिष्कारको जल्दीसे-जल्दी अमली रूप देनेके लिए निम्नलिखित बातोंकी आवश्यकता है : (१) मिल-मालिक अपने लाभोंको नियमित करें और प्रमुख रूपसे भारतीय बाजारके लिए माल तैयार करें, (२) आयात करनेवाले, विदेशी माल खरीदना छोड़ दें- तीन प्रमुख व्यापारी इसकी शुरुआत कर भी चुके हैं, (३) उपभोक्ता सभी प्रकारके विदेशी कपड़ेको खरीदनेसे इनकार कर दें और जहांतक सम्भव हो खादी खरीदें, (४) उपभोक्ता केवल खादी पहनें, मिलका कपड़ा उन गरीबोंके लिए रहने दें जो कि स्वदेशी और विदेशीके भेदको नहीं जानते, (५) उपभोक्ता स्वराज्यकी स्थापना और खादीके निर्माणमें वृद्धि होने तक उतना ही कपड़ा उपयोगमें लायें जितना कि तन ढकनेके लिए आवश्यक हो, (६) उपभोक्ता विदेशी कपड़ोंको उसी प्रकार नष्ट कर दें जिस प्रकार कि मद्य-त्यागकी शपथ लेनेपर मादक पेयको नष्ट कर दिया जाता है; या उसे विदेशोंमें उपभोगके लिए बेच दें, या जिन कामोंको १. ऐसा प्रतीत होता है कि यह टिप्पणी जो ६-७-१९२१ के यंग इंडियामें छपी थी, अन्ध समाचारपत्रोंको भी भेजी गई थी। Gandhi Heritage Portal