पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३६६

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M - ३३६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय हो जायेंगे। इसलिए सारे भारतने १४ दिनोंमें अथक प्रयत्न करके प्रतिदिन ५ लाख रुपयेके हिसाबसे धन दिया । बम्बईके बाहरके प्रान्तोंने ३० जूनतक बम्बईके जितने ही समयमें ३८ लाख रुपये जमा कर लिए थे। रिकार्ड बुरा नहीं रहा। इस विश्वासको हम किस प्रकार बनाये रख सकते हैं ? हमें हिसाब इस तरह बिलकुल ठीक-ठीक रखना चाहिए कि एक बच्चा भी उसे देख और समझ सके। असहयोगके अतिरिक्त और किसी भी उद्देश्यके लिए इस धनका उपयोग नहीं होना चाहिए और सामान्यतः नीचे लिखे उद्देश्योंके अतिरिक्त और किसी उद्देश्यके लिए नहीं : (१) चरखे और खादीके प्रचारके लिए, (२) अस्पृश्यता निवारण, और इस प्रकार दलित जातियोंके उत्थानके लिए, (३) राष्ट्रीय पाठशालाओं--जहाँ कताई और बुनाई भी शिक्षणके विषय हों- के संचालनके लिए और (४) नशाबन्दी आन्दोलनको आगे बढ़ानेके लिए। इन उद्देश्योंमें राष्ट्रीय सेवाको जारी रखना भी शामिल है। इस सेवाके द्वारा ही हम ऊपर लिखे उद्देश्योंको प्राप्त कर सकेंगे और ऊपर लिखे उद्देश्योंको प्राप्त करना यह दिखाना है कि हम स्वराज्यके योग्य हैं और उसके उचित पात्र हैं। मैं सभी प्रकारकी समितियोंको सतर्क कर दूं कि वे इस कोषसे मिलनेवाले सूद- पर निर्वाह करनेकी बात न सोचें। रुपया सूदपर लगाना और फिर सूदसे ही काम चलाना राष्ट्रपर और अपने-आपपर अविश्वास जाहिर करता है। राष्ट्रका विश्वास ही हमारी पूंजी होनी चाहिए और समय-समयपर उससे मिलनेवाला सहयोग ही हमारा सूद। यदि हम राष्ट्रके प्रतिनिधि होनेका दावा करते हैं तो हमें उसकी सेवाके लिए बनाई गई संस्थाओंका वार्षिक व्यय चलानेके लिए उसपर भरोसा करना चाहिए। सूद- पर निर्वाह करनेकी प्रवृत्ति हमें गैर-जिम्मेदार बनाती है। भारतके विभिन्न भागोंमें धर्मके नामपर जो अपार धनराशि पड़ी-पड़ी सड़ रही है, उसके कारण ऐसी तमाम धार्मिक संस्थाएँ यदि बाकायदा भ्रष्टाचारके अड्डे नहीं बन गई हैं तो ढोंग-मात्र बनकर तो रह ही गई हैं। इसलिए यदि हम पिछले अनुभवसे लाभ उठाना चाहते है, तो हमें प्राप्त हुआ सारा धन अगले छ: महीनोंमें खर्च कर देना चाहिए। मैंने बेजवाड़ामें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके सामने वित्तीय कार्यक्रम पेश किया था। वह मैंने इसलिए किया था कि मुझे मालूम था कि हमारे पास ईमानदार और योग्य कार्यकर्ता हैं जो राष्ट्रीय और प्रान्तीय स्तरपर उचित रूपसे धनका उपयोग कर सकते हैं और फिर हमें इस वर्ष के लिए उस धनराशिकी आवश्यकता भी थी। विदेशी कपड़े- के बहिष्कारमें हम तबतक सफल नहीं हो सकते, जबतक हम चरखे, हाथकता सूत और खादी खरीदने में खुले हाथों खर्च न करें। स्वदेशीका प्रचार हमें बराबर तबतक करते रहना चाहिए जबतक चरखा व्यावसायिक रूपसे लाभदायक बनकर घर-घरमें न पहुँच जाये। वर्ष-भरमें खर्च कर सकनेकी दृष्टिसे एक करोड़ रुपये बहुत बड़ी रकम नहीं है, क्योंकि उसका वितरण एक बड़े भू-भागमें करना है। मेरा सुझाव है कि इस मासके अन्ततक प्रत्येक प्रान्त अपना एक बजट बनाये और ठीक उतना ही खर्च करे -- न ज्यादा, न कम । मैंने एक महीनेका सुझाव इसलिए दिया है कि उससे पहले विभिन्न प्रान्त शायद ही अपना हिसाब-किताब ठीक कर पायें और शायद ही चन्देके वायदोंकी रकम वसूल कर पायें। और फिर हमें देखना चाहिए कि अखिल भारतीय Gandhi Heritage Portal