पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३७०

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३३८ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय यह आवश्यक था कि बम्बईसे अखिल भारतीय कांग्ग्रेस कमेटीके लिए कमसे-कम दो मुसलमान सदस्य चुने जायें। इसलिए श्री विट्ठलदास जेराजाणीने एक मुसलमान प्रति- निधिके लिए अपनी सदस्यता त्याग दी। भ्रातृभाव और सार्वजनिक भावनाके ये उदा- हरण ही मुझे यह माननेको प्रेरित करते हैं कि स्वराज्य तेजीसे हमारे निकट आ रहा है। खतरा सिर्फ यह है कि कहीं हम स्वयं उससे दूर न भागने लगें। मेरी रायमें यह घटना कार्य-समितिकी बुद्धिमानीकी परिचायक है। हमें सतर्क बनाने और ईमानपर दृढ़ रखनेके लिए उसने ठीक मौकेपर अपनी राय दी। कार्य-समितिने हमें सतर्क किया है कि हम विशेष और नाजुक हितोंकी अवहेलना न कर दें और जहाँ-कहीं भी मुसल- मानोंमें जोशका जरा भी अभाव दिखाई दे हिन्दू यह ध्यान रखें कि उनकी ओरसे मुसलमानोंमें संकोच, उदासीनता और सन्देहके लिए कोई कारण न रह जाये। और जो बात हिन्दू और मुसलमानोंके विषयमें है, वहीं दूसरी जातियोंके आपसी सम्बन्धोंपर भी लागू होती है। हित जितना ही दुर्बल हो उसका उतना ही अधिक ध्यान शक्तिशाली दलको रखना चाहिए। तब फिर जातीय भेदभावके लिए हमारे बीच कोई स्थान नहीं रह जायेगा। क्या यह उल्लंघन है? नरमदलीय लोगोंसे यह निवेदन करके कि वे मद्य-निषेध आन्दोलनमें हमारे साथ सहयोग करें, मित्रोंको यह सन्देह है कि मैंने कांग्रेसके प्रस्तावका उल्लंघन किया है। और मेरा उनको मद्य-निषेधके बारेमें कानून बनानेके लिए आमन्त्रित करना तो विशेष रूपसे प्रस्तावका उल्लंघन माना गया है। एक मित्र पूछते हैं : “जिन परिषदोंका हमने बहिष्कार किया है, हम उनकी सहायता क्यों लें? क्या इसका यह अर्थ नहीं कि आपने अपने रुखमें कुछ परिवर्तन कर लिया है ? मैं कहूँगा कि इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं है। चुनौती और प्रार्थनामें काफी बड़ा अन्तर है। यदि मैं लाचारी महसूस करके कोई प्रार्थना करता तो उसका अर्थ कांग्रेसके प्रस्तावका उल्लंघन और मेरे पुराने रुखमें परिवर्तन होता; किन्तु विनम्र भाषामें नरम दलवालों को अपना कर्तव्य पूरा करने और जनताके प्रतिनिधि होनेके अपने दावेको सिद्ध करनेके लिए कहनेसे तो मेरी रायमें हमारी स्थिति और मजबूत होती है। जो-कुछ हम कर रहे हैं उसमें सहयोग देने के लिए सरकार और नरम दलवालों को आमन्त्रित करने में मैं कोई बुराई नहीं देखता। नरम दलवालों से और यहाँतक कि सरकारी अधिकारियों और अधिकृत सरकारी संस्थाओंके जरिए सरकारसे भी यह प्रार्थना करने में कोई हानि नहीं कि वे खिलाफत और पंजाबके मामले में सहायता दें, या शराबकी सभी दूकानें बन्द करा दें, या हर स्कूलमें चरखा चालू करा दें, या जनमतका खयाल करते विदेशी कपड़ेके आयातपर कानूनन रोक लगा दें। क्योंकि यदि वे यह-सब कर सकते हैं तो जिस प्रणालीसे उन्हें प्रेम है या जिसका वे संचालन करते हैं मैं उसे बुरा समझना छोड़ दूंगा। यह अपील करके मैंने उन्हें आंशिक रूपसे जनताका आदर फिर प्राप्त करनेका मार्ग बताया है और इस अपीलका असर न होनेपर अपने और देशके लिए १. देखिए “पत्र : नरमदलीय भाइयोंको",८-६-१९२१ । . Gandhi Heritage Heritage Portal