पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३९५

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भाषण : बम्बईमें शराब-बन्दीपर ३६३ ही होता आया है। इसलिए थोड़े-से पारसी शराब-विक्रेता बदनाम हो गये हैं और दूसरे नजरोंके सामने भी नहीं आये हैं। शराबके पारसी व्यापारियोंका उदाहरण बहुत स्पष्ट होकर देशके सामने आ गया है। मैंने एक्सलसियर थियेटर [वाली सभा में अपने पारसी मित्रोंसे कहा था कि वे अपने शिष्टतम आचरणसे समस्त देशके सामने एक आदर्श उपस्थित कर सकेंगे। किन्तु मुझे गहरा दुःख है कि पारसियोंमें से इतने लोग जनताको शराब बेचकर अपनी आजीविका कमा रहे हैं और मेरा खयाल है कि यह उनके लिए बहुत बदनामीकी बात है। मुझे इस बातका भी खेद है कि इतनी सारी विधवाओंको अपना गुजारा शराब बेचकर करना पड़ता है। मेरी रायमें शराब बेचनेकी अपेक्षा इन बहनोंके लिए पत्थर तोड़कर या भीख मांगकर भी अपना पेट भरना ज्यादा अच्छा है। अगर मेरे पास पेटिट या टाटाके' जैसे साधन होते तो मैं इन पारसी विधवाओंके पैरोंपर जा गिरता और उनसे प्रार्थना करता कि वे जितना रुपया चाहें ले लें, परन्तु उस व्यापारको छोड़ दें। मैं बहुत ही खुशीसे इन बहनोंकी सार-सँभाल करता। यदि मेरे पास रुपया होता तो मैं उसका सबसे पहला उपयोग यही करता कि उसे अपने पारसी भाई-बहनोंको देता और उनसे शराबका व्यापार बन्द कर देनेकी प्रार्थना करता। मेरे कुछ पारसी मित्रोंने मुझसे कहा है कि हम तो केवल एक गिलास शराब पीते हैं और उसे छोड़ नहीं सकते; हमारे धर्ममें मद्यपानका निषेध नहीं है। इसके विपरीत दूसरे कुछ लोगोंने बताया है कि पारसी धर्ममें मद्यपान निषिद्ध है। लेकिन आपके धर्ममें मद्यपानको अनुमति हो या न हो, मेरा हृदय अपनी इन पारसी बहनोंके प्रति क्षोभसे भरा हुआ है। यदि शराब रूपी जहरका बेचना ज्यादा दिनतक जारी रहा तो वह आपके जैसी छोटी बिरादरीको बरबाद करने के लिए बहुत काफी है। आप पारसी मित्रोंने श्रीकृष्णका नाम सुना होगा और यादवोंके सम्बन्धमें, जिनकी संख्या लाखों या उससे भी ज्यादा थी, उनकी भविष्यवाणी भी सुनी होगी। श्रीकृष्णने उनसे कहा था कि यदि वे मद्यपान करेंगे और व्यभिचार करेंगे तो उनका समस्त वंश इस पृथ्वीतलसे सदाके लिए मिट जायेगा। और उन शक्तिशाली यादवोंका अब क्या चिह्न बचा है ? क्या व्यभिचार मद्यपानका निकटतम साथी नहीं है? मुझे अपने दक्षिण आफ्रिकाके अनुभवसे मालूम है कि ये शराबके विक्रेता और खरीददार कैसे लोग होते हैं। जो लोग शराब बेचते हैं उनको शराबखोरोंके स्तरपर उतर आना पड़ता है और अपनी मनोवृत्ति भी उसी स्तरको बना लेनी पड़ती है। मुझे इन बातोंका बहुत अनुभव है और मैंने वस्तुतः समस्त देशमें जो-कुछ देखा है वहीं मैं आपको बता रहा हूँ। मेरी यह भी राय है कि जो लोग शराब बेचते हैं वे ईमानदार नहीं हो सकते। में यह बात अपने पारसी भाइयोंसे ही नहीं कह रहा हूँ, बल्कि भण्डारियोंसे भी कह रहा हूँ जिन्होंने मुझे लिखा है कि वे बरबाद हो गये हैं और वे धीरे-धीरे २० या २५ सालमें १. उद्योगपति व दानी । Gandhi Heritage Portal