पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/४०

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फूटके बलपर शासन ही हमारे देशसे अग्नेजोंकी बन्दूके, उनका शस्त्र-वल हटेगा वैसे ही हम आपसमें लडना शुरू कर देगे? क्या आजसे साठ वर्ष पहले हम अपनी रक्षा करनेमें आजकी अपेक्षा कम समर्थ थे? या क्या यह सच नहीं है कि पाश्चात्य मानदण्डोसे देखा जाये तो हम इतने असहाय कभी थे ही नही जितने कि आज है? जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ स्वराज्यका अर्थ यही है कि उसमे आत्म-रक्षाकी शक्ति होनी चाहिए; जो देश स्वय अपनी रक्षा नहीं कर सकता उसे तत्काल तो पूर्ण स्वराज्यके योग्य नहीं माना जा सकता । सर विलियमने अपने एक इसी वाक्यके जरिये अनजाने ही ब्रिटिश शासनको भर्त्सना कर दी है और उससे यह सिद्ध कर दिया है कि इसे सुधारना या उसका बिलकुल ही अन्त कर देना अब एक फौरी आवश्यकता बन गई है। मेरा तरीका तो कष्ट-सहन और यात्मिक बलका है और देश माज इस तरीकेसे अपनी मात्म-रक्षा करनेके लिए तैयार है। पर सर विलियमके मानदण्डके अनुसार तो इन सुधारोमे ऐसी कोई चीज नही है जो आगामी सौ वर्षोमे भी भारतको विश्वकी सम्मि- लित शक्तियोसे आत्म-रक्षा करने योग्य बना सके । उस मान दण्डके अनुसार तो ये सुधार भारतको जकडनेवाली शृखलामोको और मजबूत बनाते है और उसमे असमर्थताकी भावना पैदा करते है। वक्ताने बड़ी शानके साथ कहा है कि हर तरहके निहित स्वार्थोका खात्मा हो जायेगा । यहाँ उनको इस बातकी याद दिलाना जरूरी है कि भारतके सबसे महत्त्वपूर्ण हितको, उसकी स्वावलम्बिताको इसी विदेशी शासनने नष्ट किया है और वक्ताकी जो योजना है वह तो भारतकी गरीबीको और भी बढा देगी। सर विलियमने असहयोगियोके इरादोंको जितने गलत रूपमे पेश किया है उतने ही गलत ढगसे उन्होने उनके तरीकोको समझा है । शिक्षित-वर्गोका सहयोग प्राप्त करनेमे हमे असफलता नही मिली है। मैं मानता हूँ कि हमे उनका और अधिक सह- योग मिल सकता था। लेकिन मैं कह सकता हूँ कि उनका एक भारी बहुमत मनसे हमारे साथ है; अलबत्ता अपनी दैनिक दुर्बलताओके कारण वे जिसे त्याग समझते है, वह कर नहीं पाते । हम शुरूसे ही अपने विचारोसे जनताको प्रभावित करनेका प्रयोग कर रहे है। हम जनताको ही अपना मुख्य आधार समझते है, क्योकि स्वराज्य तो आखिर उसीको पाना है। स्वराज्यकी इतनी अधिक आवश्यकता न तो धनी लोगोको है और न शिक्षित-वर्गोको । स्वराज्य किसी भी किस्मका हो, इन दोनो वर्गोको अपने हितको स्वराज्यके लिए उपयोगी बनाना पडेगा। जैसे ही जनता अपने अन्दर आत्मनियन्त्रणकी सामर्थ्य पैदा कर लेगी और सार्वजनिक अनुशासनमे दीक्षित हो जायेगी, हम उसे आव- श्यकता पडनेपर यह सलाह देनेसे नहीं चूकेगे कि वह ऐसी सरकारको करोकी अदायगी बन्द कर दे जिसने सचमुच कमी उसके कल्याणका खयाल नहीं रखा; जिसने उसका शोषण किया है और शोषणके विरुद्ध खड़े होनेका जरा भी रुख अख्तियार करते ही उसका दमन किया है। सर विलियमने असहयोग आन्दोलनके प्रति अपनाये गये सरकारके तरीकोका वर्णन करनेमे बड़ी चालाकी दिखाई है। वे कहते है कि भारत सुरक्षा कानून उन लोगोके खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जायेगा जो किसीको हानि नहीं पहुंचाते और जो लोगोको हिंसा करनेसे रोकते है। लेकिन वे असहयोगियोके खिलाफ साधारण }