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यद्यपि समूचे भारतका विस्तार और जिनकी स्मृतिको चिरस्थायी बनाने तथा जिस प्रयोजनको पूरा करनेके लिए यह कोष इकट्ठा किया जा रहा है उन्हें देखते हुए यह रकम बहुत कम है, तथापि वह एक बड़े पैमानेपर अथक प्रयत्न किये बिना एकत्र नहीं की जा सकेगी । इस रकमको एकत्र न करनेका सबसे अचूक उपाय यह है कि प्रत्येक प्रान्त केवल अपने निर्धारित अंशकी बात सोचता रहे और उसीसे सन्तुष्ट बना रहे। और इसे एकत्र कर लेनेका सबसे अचूक और क्षिप्र उपाय है कि प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक प्रान्त पूरी राशिकी बात सोचे या अपनी शक्तिभर जितना कर सकता है, एकत्र करे । उदाहरण के लिए बम्बईके कुछ ही लखपती, यदि चाहें तो, एक दिनमें एक करोड़ रुपयेकी निर्धारित राशि चन्देमें दे सकते हैं । बम्बईके लिए यह हास्यास्पद होगा कि वह देशके आगे केवल अपना हिस्सा फेंककर सन्तुष्ट हो जाये । अकेला बम्बई ही यह पूरा भार उठा सकता है । बम्बईने अपने बारेमें देशका यह खयाल बना दिया है कि वह जन-आन्दोलनका खर्च जुटा सकता है । जलियाँवाला बाग-कोषके लिए बम्बईने सबसे अधिक धन दिया था। कांग्रेसकी पंजाब उप-समितिके लिए बम्बईने ही सबसे मोटी रकम दी थी । बम्बईने आर्थिक सहायतामें और सभी प्रान्तोंको हमेशा पछाड़ा है। गुजरातका भी साढ़े तीन लाखसे कुछ ऊपरका अपना हिस्सा देकर अलग बैठ रहना इतना ही हास्यास्पद होगा । वह आसानीसे और अधिक इकट्ठा कर सकता है; जब कि यदि अतीतके आधारपर भविष्यके बारेमें अनुमान किया जाये तो संयुक्त प्रान्तसे किसी बड़ी रकमकी आशा नहीं की जा सकती। वहाँ कोई समृद्ध सार्वजनिक कार्यकर्ता नहीं है । पण्डित नेहरू सदा खुले हाथों दिया करते थे किन्तु अब उनकी लाखों रुपये प्रतिवर्षकी कमाई बन्द हो गई है । भारतके सबसे बड़े भिखारी, पण्डित मालवीयजीकी सेवायें अभी आन्दोलनको सुलभ नहीं हैं। इसलिए संयुक्त प्रान्तसे यह आशा करना व्यर्थ होगा कि वह लगभग १६ लाख रुपयेका अपना हिस्सा पूरा कर देगा। फिर भी, यदि उस प्रान्तके चार करोड़ नब्बे लाख लोगोंके हृदयको छुआ जा सके, यदि बड़े-बड़े जमींदारोंका ध्यान आकर्षित किया जा सके तो सोलह लाख क्या बड़ी रकम है ? शराबके खर्चकी बचतसे ही उसका हिस्सा पूरा किया जा सकता है। और फिर उसमें हरिद्वार और बनारस भी तो हैं। इन प्रख्यात देवस्थानों में दर्शनार्थ जो धनवान तीर्थयात्री आते हैं, उनसे कार्यकर्त्ता तिलक स्मारक-कोषके लिए आसानी-से चन्दा ले सकते हैं। उनमें आस्था और आस्थासे उत्पन्न होनेवाला साहस होना चाहिए। यही हाल बंगालका है। बंगालमें अनेक धनवान व्यक्ति हैं, किन्तु वह अभी तक कभी देशभक्तिपूर्ण कार्योंके लिए दान देनेके लिए प्रसिद्ध नहीं रहा । श्री दासको' इस कामको हाथमें लेना चाहिए । कलकत्तामें बसे हुए मारवाड़ियों और

१.मोतीलाल नेहरू (१८६१-१९३१); सुप्रसिद्ध वकील व राजनीतिज्ञ।

२.मदनमोहन मालवीय (१८६१-१९४६); बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक; शाही परिषद्के सदस्थ; दो बार कांग्रेसके अध्यक्ष निर्वाचित।

३.देशवन्धु चित्तरंजन दास (१८७०-१९२५); प्रसिद्ध वकील व कांग्रेसी नेता, वक्ता और लेखक,१९२१ में कांग्रेसके अध्यक्ष निर्वाचित ।