पक्षोंमें उत्तेजना फैलती और अधिक बुरा तो यह होता कि मद्य-निषधके कार्यको धक्का पहुँचता । किन्तु आज तो डा० कानुगाके शौर्य, त्याग तथा आत्मसंयमने उस आदर्शको आगे बढ़ाया है, जिसके लिए उन्होंने अपना खून बहाया है। उसने शराबके दुकानदारों और उनके पास जानेवालोंकी और अधिक गुस्सा दिखानेकी प्रवृत्तिको रोका है और मद्य-निषेधके धर्म-युद्धका स्तर बहुत ऊँचा उठा दिया है।
एक मजिस्ट्रेटकी सनक
देहरादून छावनीके मजिस्ट्रेटने सत्याग्रह दिवसपर यह हुक्म निकाला कि उस दिन उनकी छावनीमें दुकानें अवश्य खोली जायें और यदि दुकानदारोंने उनकी आज्ञाका उल्लंघन किया तो वे छावनीसे निर्वासित कर दिये जायेंगे। इस आज्ञाने यह दर्शा दिया है कि भारतमें ओ'डायरशाही' अभीतक मरी नहीं है। ज्यादातर लोगोंको इस बातकी जानकारी नहीं है कि छावनियोंमें मजिस्ट्रेटोंको वे अधिकार प्राप्त रहते हैं, जिनका अन्य स्थानोंमें केवल 'मार्शल लॉ' के अधीन ही प्रयोग किया जा सकता है। छावनियोंके निवासी मजिस्ट्रेटोंकी दयापर निर्भर रहते हैं। आश्चर्यकी बात तो यह है कि लोगोंने एक ऐसी शासन-पद्धतिको इतनी लम्बी अवधितक और इतने धैर्यके साथ बरदाश्त कर लिया, जिसका निर्माण ही इस दृष्टिसे किया गया था कि उनकी स्वतन्त्रताको इतना नियन्त्रित किया जाये जिससे वे गुलामों-जैसे बन जायें ।
सम्पादकीय परिवर्तन
मैं पाठकोंको खेदके साथ सूचित करता हूँ कि श्री लालचन्द अडवानी, जो सहायक सम्पादक थे, अपने कार्य-भारसे मुक्त कर दिये गये हैं और अब उनका 'यंग इंडिया 'से किसी भी हैसियतसे कोई सम्बन्ध नहीं है । अतः अब 'यंग इंडिया' को भेजे जानेवाले पत्र केवल सम्पादक, 'यंग इंडिया', के पतेपर भेजे जायें ।
[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २०-४-१९२१
१०. कुहरा
जब-जब मैं देखता हूँ कि मेरे मित्र आन्दोलनको गलत समझ रहे हैं तब-तब मैं अपने मनमें एक प्रसिद्ध भजनके ये शब्द दुहरा लेता हूँ : “वी शैल नो ईच अदर बैटर व्हेन दि मिस्ट्स हैव रोल्ड अवे'--जब भ्रांतिका कुहरा छँट जायेगा तब हम परस्पर एक-दूसरेको अधिक अच्छी तरह जानेंगे । एक मित्रने अभी-अभी मुझे दिनांक १४ के 'सवेंट आफ इंडिया' से लिये हुए असहयोगसे सम्बन्धित कुछ अनुच्छेद भेजे हैं। प्रस्तावों तथा प्रयोजनोंकी कैफियत देना एक अत्यन्त निरर्थक कार्य है। यह वर्ष शीघ्र ही बीत जायेगा और शब्दोंकी अपेक्षा हमारे कार्य ही असहयोगके अर्थको अधिक व्यक्त करेंगे ।
१. सर माइकेल ओ'डायर, पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर(१९१३-१९१९); जिनका शासन १९१९ में किये गये अत्याचारोंके कारण भारतीय इतिहास में 'डायरशाही ' के नामसे प्रसिद्ध हुआ ।