पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/४३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४०६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय एक दूसरी शंका बम्बईके एक भाई पूछते हैं : यदि ढेढ़ और भंगी पढ़-लिख जायेंगे तो वे नौकरी करना अथवा व्यापारमें भाग लेना चाहेंगे। तब उनका काम कौन करेगा? इस पत्रमें दूसरे प्रश्न भी हैं किन्तु उनका उत्तर इस प्रश्नके उत्तरमें आ जाता है; इसलिए मैं उन्हें अलग नहीं देता। उक्त प्रश्न हम अस्पृश्यताको जिस रूपमें जानते हैं उसकी भयंकरता बताता है। अन्त्यजोंके साथ हम सामान्यतः जो बरताव करते हैं उनमें केवल द्वेष ही होता है। वे पढ़ें इसका अर्थ है वे भंगीका काम न करें, मुझे तो यह खयाल ही अनुचित लगता है, किन्तु इस खयाल के पीछे भी कारण हम ही हैं। हम भंगीके कामको नीचा मानते हैं; किन्तु ठीक सोचें तो यह तो सफाईका काम है और इसलिए पवित्र है। माँ अपने बच्चेका मैला उठाती है, इससे वह और भी अधिक पवित्र मानी जाती है। रोगीकी सेवा-शुश्रूषा करनेवाली नर्स बदबूदार चीजोंको उठाती है किन्तु हम उसका सम्मान करते है। जो मनुष्य हमारे पाखानोंको साफ रखकर हमें तन्दुरुस्त रखने में मदद देता है हम उसका आदर क्यों न करें ? उसको नीचे गिराकर हम खुद नीचे गिरते हैं। जो दूसरोंको कुएँमें गिराता है वह स्वयं भी कुएँ में गिरता है। इसलिए हमें भंगी और उनकी जैसी अन्य जातियोंको नीचा समझनेका कोई अधिकार नहीं है। भोजा भगत मोची थे, फिर भी हम उनके भजनोंको बड़े आदरसे गाते हैं और उनको पूज्य भावसे देखते हैं। जो 'रामायण' पढ़ते हैं उनमें से ऐसा कौन होगा जिसके मनमें निषाद्की राम-भक्ति देखकर उसके प्रति आदरका भाव पैदा न हुआ हो ? फिर भंगी और उनकी जैसी अन्य जातियाँ अपने धन्धे छोड़ें तो हमारे लिए उनका विरोध करने या घबरानेका कोई कारण नहीं है। हम जबतक किसीसे भी जबरदस्ती कोई काम कराना चाहेंगे तबतक हम स्वराज्यके योग्य नहीं होंगे। हमें अपने-अपने पाखानोंको खूब साफ रखना सीख लेना चाहिए। हमें जब अपने पाखानोंको गन्दा रखने में शर्म मालूम होने लगेगी तब हम उन्हें वाचनालयकी तरह साफ रखेंगे। हमारे पाखा- नोंमें जो दुर्गन्ध या उससे उत्पन्न दूषित वायु रहती है वह हमारी सभ्यताको कलंकित करती है और यह बताती है कि हममें स्वास्थ्यके नियमोंका अज्ञान कितना गहरा है। हमारे पाखानोंकी खराब हालत अन्त्यजोंके प्रति हमारे दूषित दृष्टिकोणका प्रमाण है और हम जिन अनेक रोगों के शिकार होते हैं उनका कारण है। दूसरी जातियोंके संसर्गसे हम जाति-च्युत हो जायेंगे या भ्रष्ट हो जायेंगे, यह सोचना हमारी दुर्बलता- का सूचक है। हम जबतक संसारमें हैं तबतक दूसरोंका संसर्ग तो रहेगा ही। हमारे धर्मकी कसौटी यही है कि हम इस संसर्गके होनेपर भी निर्दोष रह सकें। भंगी और ऐसी अन्य जातियोंको स्वच्छता सिखाना, आगे बढ़ाना और उनका सम्मान करना दयाधर्म है । ऐसा करनेका अर्थ यह नहीं है कि हम उनके साथ खानपानका सम्बन्ध भी रखें; किन्तु यह तो आवश्यक है कि हम अपने हृदयके भावोंको शुद्ध करें। Gandhi Heritage Porta