पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/४६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०६. त्याग और उत्पादन पुरातनका त्याग और निर्माण नाश और रचना -असहयोगके ये दो अंग हैं। हम इन दोनोंमें से एकके बिना भी काम नहीं चला सकते। हमने जो कदम उठा लिया है और जिस स्थानपर हम आ खड़े हुए है उसके अन्तर्गत ये दोनों अंग पूरी तरह आ जाते हैं और मेरी समझसे तो इनके बिना हम आगे बढ़ ही नहीं सकते। मैं किसी अन्य प्रकारसे अहिंसात्मक असह्योगके आन्दोलनको चलाना असम्भव समझता हूँ। हम स्वदेशीके बिना एक डग भी आगे नहीं बढ़ सकते, मुझे यह भासित होता ही रहता है। हमारी शक्तिका पूर्ण विकास इसी तरह हो सकता है। ज्ञानपूर्वक नाश और ज्ञानपूर्वक निर्माण इसके अन्तर्गत आ जाता है। इसीमें राष्ट्रके सब अंगोंका व्यायाम और उनकी शक्तिका परीक्षण हो जाता है। राष्ट्र अबतक किसी भी कार्यमें पूरे मनसे नहीं लगा है। स्वदेशीका सफल प्रयोग जी-जानसे जुटे बिना असम्भव है। जो राष्ट्र पूरे मनसे प्रयत्न करता है उसके लिए स्वराज्य हस्तामलकवत् है; और स्वदेशीके बिना स्वराज्यको आकाश कुसुमके समान समझना चाहिए। स्वदेशीकी सफलताके लिए हमें विदेशी कपड़ेका पूरा त्याग करना है और उसकी कमी नया देशी कपड़ा बनाकर पूरी करनी है। हम अभीतक तो नाश करनेसे डरते थे। अब हमें चरखेके रूपमें रत्नचिन्तामणि मिल गया है। इसका अर्थ यह है कि हमें उत्पादनका अचूक उपाय मालूम हो गया है। किन्तु हमें त्यागके सम्बन्धमें बहुत ध्यान देनेकी जरूरत है। उत्पादनकी गति एक निश्चित सीमातक ही बढ़ सकती है। बादमें तो वह सहज रूपसे बढ़ती रहेगी। नाशका कार्य एक क्षणमें किया जा सकता है। नाश करने के लिए भी विशेष भावनाकी आवश्यकता होती है। जब हमारे मन बदल जायें तब समझना चाहिए कि अब हम नाश करने के लिए तैयार हो गये हैं। त्याग वैराग्यके बिना नहीं टिकता यह बात बहुत अनुभवके आधारपर कही गई है। हमें विदेशी कपड़ेके प्रति इतनी विरक्ति, इतनी अप्रीति हो जानी चाहिए जितनी किसी मलिन वस्तुके प्रति होती है। जबतक हमारे मनमें इतनी विरक्ति उत्पन्न नहीं होती तबतक हमारा मन जापानकी साड़ी या मैनचेस्टरकी मलमलकी तरफ जाता रहेगा। और तबतक हम इस तरहकी चीजोंकी माँग करते रहेंगे एवं तबतक ऐसी चीजोंके बेचनेवाले हमें धोखा देकर इन चीजोंको हमारे सिर मढ़ते रहेंगे। इसलिए अभी तो हमें वैसी दिखनेवाली चीजोंको छूना भी नहीं चाहिए। कहीं हम धोखा न खा जायें, यह भय तो हमें लगता रहना चाहिए। इस तरहकी विरक्ति उत्पन्न करनेके लिए हमें यह भी स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि हमारी दासताका मूल विदेशी कपड़ा है। दूसरी सब चीजें उसके बाद ही आई है। ईस्ट इंडिया कम्पनीकी कोठी विदेशी कपड़ेके पीछे और उसीके लिए बनाई गई थी। Gandhi Heritage Portal