पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/४६४

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४३२ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय पहली अगस्त हमारे लिए एक महान् स्मृति-दिवस होना चाहिए। हमारे युगके लोकमान्यकी पहली पुण्यतिथि उसी दिन पड़ती है। उस दिन हम संसारको कौन-सा चमत्कार करके दिखायेंगे? हमारे मनमें लोकमान्यके प्रति जो पूज्यभाव है उसको हम किस प्रकार व्यक्त करें? उसका केवल एक उपाय है, हम उस दिन सब तरहके विदेशी कपड़ेका पूरा बहिष्कार करें। हम सब उस दिन प्रत्येक शहर या गाँवमें एक ही स्थानपर इकट्ठे हों और अपने सब विदेशी कपड़े लेकर उनका वहाँ सदाके लिए त्याग करें। इसमें लोकमान्यका अधिकतम सम्मान आ जाता है और इस एक कामको पूरा करनेसे ही हमारे लिए एक वर्ष में स्वराज्य लेना सर्वथा सम्भव हो जाता है। इसलिए पहली अगस्ततक तो खाते-पीते, बैठते-उठते यही विचार करते रहें कि हम स्वयं विदेशी कपड़ेका त्याग कैसे कर सकते हैं और दूसरोंसे कैसे करा सकते हैं। हमने धन-संग्रहके लिए जितना प्रयत्न किया था उससे अधिक प्रयत्न हमें विदेशी कपड़ेके त्यागके लिए करना है। परन्तु प्रत्येक जातिको अपना इन्तजाम खुद कर लेना चाहिए। प्रत्येक जातिको विदेशी कपड़ा इकट्ठा करके कांग्रेसकी [बहिष्कार] समितिको दे देना चाहिए और उसकी रसीद ले लेनी चाहिए। यह कार्य स्त्रियोंको अधिक कठिन लगेगा। उनके लिए रुपया देना आसान था जेवर देना भी आसान था, किन्तु विदेशी कपड़ेकी सुन्दर लगनेवाली साड़ियोंको निकालकर दे देना तो उन्हें बहुत कठिन लगेगा। फिर भी उन्हें इतना कड़वा बूंट पीना ही है। समस्त राष्ट्र के लिए यह चॅट अन्तिम छूट है। उसके बाद तो थोड़ेसे स्त्री-पुरुषोंको जेल जानेके लिए तैयार रहना होगा। ईश्वर गुजरातके स्त्री-पुरुषोंको इतनी त्याग-वृत्ति दे। हमारे पास समय थोड़ा है किन्तु इसीमें हमें अपना यह-सब काम कर लेना है । दूसरा अंग है उत्पादन। जो लोग खादी पहनने लगे हैं उन्हें खादीके उत्पादनमें जुट जाना चाहिए। इस कार्य में शिथिलता करना पाप माना जायेगा। यदि राष्ट्र विदेशी कपड़ेको सर्वथा त्याग देगा तो हमें बहुत अधिक खादीकी जरूरत होगी। हम विदेशी कपड़ेको इसलिए नष्ट करते हैं कि हमें खादीका उपयोग बढ़ाना है; खादीका उपयोग इसलिए बढ़ाना है कि हमें उसके द्वारा चरखेकी प्रवृत्ति बढ़ानी है और राष्ट्रको उद्योगी बनाना है, एवं लोगोंकी झोंपड़ियोंमें समृद्धिका प्रवेश कराना है। प्रत्येक भारतीयकी औसत वार्षिक आय छब्बीस रुपये है। इसे दूना करनेका यह एक आसान तरीका है। करोड़ों लोगोंकी आय-वृद्धिका कोई दूसरा तरीका नहीं है। इसलिए गुजरातके हर घरमें चरखा चलाया जाना चाहिए और गुजरातके हर गाँवमें हाथके सूतकी खादीका उत्पादन होना चाहिए। इस समय कांग्रेसकी [ बहिष्कार] समितिकी ओरसे यही प्रवृत्ति प्रधानतः चलाई जानी चाहिए। विदेशीके त्याग और स्वदेशीके उत्पादनसे ही हमारी कार्य- दक्षताका परिचय मिलेगा। जो लोग कांग्रेसके उद्देश्यको समझते हैं और उसका सम्मान करते हैं वे मिलके बने कपड़ोंका व्यवहार कर ही नहीं सकते। यदि वे करेंगे तो मिलोंका कपड़ा गरीबों- को नहीं मिलेगा और उसके भाव चढ़ जायेंगे। यदि हमें खादीकी प्रतिष्ठा बढ़ानी हो और जुलाहोंको अधिक मजूरी देनी हो तो भी हमें खादीको शिष्ट वेश बनाना Gandhi Heritage Porta