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११. फूटके बलपर शासन

विधान सभामें दिया गया सर विलियम विन्सेंटका भाषण पढ़कर दुःख होता है। मैं समझता हूँ कि जानकारी जुटानेवाले लोगोंने उनको बिलकुल ही अँधेरेमें रखा है। उनके भाषणसे सिद्धान्तहीनता तो नहीं, अज्ञान टपकता है।

उन्होंने जो सफाई दी है वह ऊपरसे देखनेमें तर्क-सम्मत लगती है। पर उसमें तथ्योंको कभी तोड़-मरोड़कर और कभी गढ़कर पेश किया गया है। उसके द्वारा हम लोगोंमें लोभकी प्रवृत्तिको जगानेकी कोशिश की गई है और उसमें असहयोगियोंके इरादोंको गलत ढंगसे पेश किया गया है।

वे कहते हैं कि असहयोगियोंका जाना-माना उद्देश्य सरकारको ठप्प कर देना है और "वे अपना यह उद्देश्य पूरा करनेके लिए असन्तोष फैला सकनेवाले किसी भी साधनका प्रयोग करनेसे बाज नहीं आये हैं।" उनके ये दोनों ही कथन अर्ध-सत्य हैं । असहयोगका प्राथमिक उद्देश्य कहीं भी सरकारको ठप्प करना नहीं बतलाया गया है। उसका प्राथमिक उद्देश्य आत्म-शुद्धि है। अलबत्ता इसका प्रत्यक्ष परिणाम होना यही चाहिए कि हमारी बुराइयों और कमजोरियोंपर पनपनेवाली सरकार ठप्प हो जाये । इसी प्रकार इस कथनमें भी पूरी सचाई नहीं है कि हमने लोगोंके असन्तोषके सभी उद्गमोंका उपयोग अपने पक्षमें किया है। अवश्य ही जहाँ लोग ठीक कारणोंसे असन्तुष्ट थे हमें उनका उपयोग करनेके लिए बाध्य होना पड़ा है। किन्तु यदि कहीं लोगोंका असन्तोष बेजा है तो हमने उसका समर्थन नहीं किया है और उसका बेजा फायदा तो कभी नहीं उठाया । भले ही इसमें भावना यह रही हो कि अगर हम वैसा करेंगे तो उससे हमारे उद्देश्यको हानि पहुँचेगी। आगे जो वाक्य दिया जा रहा है सर विलियमने वह अपने मतके समर्थनमें कहा था । वह गलत है और इससे साफ हो जाता है कि मेरे कथनका क्या तात्पर्य है। उन्होंने कहा था: 'जहाँ भी मालिकों और कर्मचारियोंके बीच कोई झगड़ा दिखता है, असहयोग दलका कोई-न-कोई नुमाइन्दा या कार्यकर्ता वहाँ असन्तोष और वैमनस्य फैलाने तुरन्त पहुँच जाता है।" यह सिर्फ गलत ही नहीं है बल्कि ऐसा कहनेमें उनका इरादा दोनों ही पक्षोंको असहयोगियोंके विरुद्ध भड़काना है। मजदूरों और पूंजीपतियोंके बीच विवादोंसे कोई राजनीतिक लाभ न उठाना तो असह्योगियोंका घोषित उद्देश्य है । असह्योगियोंने दोनोंके प्रति निष्पक्ष रहनेकी कोशिश की है। मजदूरोंको पूंजीपतियोंके विरुद्ध खड़ा करनेकी बात सोचना हमारे लिए मूर्खतापूर्ण होगा। वह तो बिलकुल सरकारके हाथोंमें खेलना होगा, क्योंकि सरकार पूँजीपतियोंको मजदूरोंके और मजदूरोंको पूंजीपतियोंके विरुद्ध खड़ा करके अपनी स्थिति काफी सुदृढ़ बना लेगी । उदाहरणके तौरपर झरियामें एक असहयोगीने ही हड़तालको बढ़नेसे रोका था । कलकत्तामें असहयोगियोंने ही स्थितिको ज्यादा नहीं

१. वाइसरायकी कार्यकारिणी परिषद्में गृह-मन्त्री ।

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