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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बिगड़ने दिया था। किन्तु जहाँ-कहीं हड़तालियोंकी शिकायतें वाजिब होंगी वहाँ असहयोगी उनके पक्षमें खड़े होनेमें तनिक भी आगा-पीछा नहीं करेंगे। वे हमेशा गैर-वाजिब हड़तालोंमें मदद देनेसे तो इनकार करते ही रहे हैं। सर विलियम विन्सेंट कहते हैं: "जहाँ भी जातिगत दुर्भावना दिखाई पड़ती है यह शैतान चौकड़ी तुरन्त वहीं आग भड़काने पहुँच जाती है।" वे स्वयं जानते होंगे कि यह एक झूठ बात है। अंग्रेजों और भारतीयोंके बीच जातिगत दुर्भावना मौजूद है । जलियांवाला बागकी याद तो सदा ताजा रहेगी। फिर भी यह शैतान चौकड़ी सचमुच शान्ति-दूत बनकर काम करती रही है। हर मौकेपर अविवेकपूर्ण क्रोधको भड़कनेसे रोकती रही है । और मैं तो इतना तक कहनेका साहस कर सकता हूँ कि यदि हमारे अन्दर अहिंसाकी भावना न होती तो डायरशाही और ओ'डायरशाहीकी धमकियोंके बावजूद कहीं अधिक संख्या में निर्दोष व्यक्तियोंका लहू बहता। हमारा कसूर सिर्फ इतना था कि हमने ठोकर मारनेवाले बूटको चाटनेसे इनकार कर दिया था और सरकार द्वारा सार्वजनिक रूपमें पश्चात्ताप प्रकट करने तक उससे सहयोग बन्द कर दिया था। असहयोगियोंको इसका श्रेय मिलना चाहिए कि उन्होंने अन्यायके कारण उत्तेजित जनताके क्रोधका रुख अंग्रेजोंके बजाय अंग्रेजों द्वारा चलाई जानेवाली शासन-व्यवस्थाकी ओर मोड़ दिया है।

परन्तु फूट डालकर शासन करनेके प्रयासमें यदि कोई कसर रह जाये तो फिर सर विलियम, सर विलियम ही नहीं रह जायेंगे। वे पूरे आवेशके साथ कहते हैं: "जमींदारों और किसानोंके बीच जहाँ कोई झगड़ा हुआ कि यह शैतान चौकड़ी वहीं अशान्ति फैलाने और अव्यवस्थाको उभारने पहुँच जाती है। सर विलियमको मालूम होना चाहिए कि किसान आन्दोलनकी बागडोर पंडित जवाहरलाल नेहरूके हाथमें है और उनका प्रमुख ध्येय ही यह है कि किसानोंको शान्त और धैर्यशील रहना सिखाया जाये । सीधी-सी बात है कि सर विलियम जमींदारोंको असहयोग आन्दोलनके खिलाफ भड़काना चाहते हैं। गनीमत यह है कि जमींदार और किसान दोनों ही भली प्रकार जानते हैं कि उनका पक्ष जबतक न्यायपूर्ण रहेगा तबतक उनको असहयोगियोंसे कोई भय नहीं है ।

सर विलियमका कहना है कि "आन्दोलन सर्वथा ध्वंसात्मक है और जहाँतक में समझ पाया हूँ उसमें रचनात्मक क्षमताका लेश भी नहीं है। "असहयोग आन्दोलनको ध्वंसात्मक कहना रोग-ग्रस्त अंगपर नश्तर लगानेवाले शल्य-चिकित्सकके कामको ध्वंसात्मक कहना है । इस ध्वंसात्मक आन्दोलनमें निर्माण या रचनाके बीज उसी तरह समाहित हैं जैसे शल्य-चिकित्सकके नश्तरमें स्वास्थ्य के बीज । क्या शराब-बन्दी ध्वंसात्मक है ? क्या जगह-जगह खुल रहे राष्ट्रीय स्कूल ध्वंसात्मक हैं? क्या हजारों नये चरखे राष्ट्रकी समृद्धिकी जड़ें खोदते हैं? वे विदेशी आधिपत्यको जरूर ध्वस्त करते हैं; फिर वह लंकाशायरका हो या जापानका ।

सर विलियम समाजके विशिष्ट वर्गोंको आम जनताके खिलाफ भड़काकर ही दम नहीं लेते, इसके बाद वे ऊँचे तबकों और सामान्य जनता दोनों ही में अन्दरूनी झगड़ों तथा बाहरी हमलोंके भयकी भावना पैदा करके उनको असहाय और अपंग बना देना चाहते हैं। क्या हिन्दू-मुस्लिम एकता एक ऐसी तुच्छ और ऊपरी चीज है कि जैसे