पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/४८५

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उचित पश्चात्ताप और उससे शिक्षा ४५३ राष्ट्र का सामंजस्यपूर्ण विकास रुक जायेगा और ये एकताके विकासके लिए घातक हैं। जैसा कि मैंने प्रायः कहा है, हिन्दू-मुस्लिम एकताका अर्थ है उन सभी लोगोंकी एकता जो विभिन्न धर्मों व पंथों के अनुयायी होने पर भी भारतको अपना देश मानते हैं। कब्रोंको अपवित्र करना विशेष रूपसे कायरतापूर्ण अपराध है। युद्ध के नियमों तकमें कब्रोंकी पवित्रता मानी जाती है। केवल पतित स्वभावका मनुष्य ही कब्रोंको अपवित्र करनेकी दुष्टता करके प्रसन्न हो सकता है। परन्तु जब हम इस बातका खयाल करते है कि इस समय राष्ट्र अपने सभी विसंगत तत्त्वोंमें सामंजस्य स्थापित करनेका प्रयत्न कर रहा है तब ऐसा अपराध और भी दुष्टतापूर्ण हो जाता । हमारे संघर्षके प्रति सहानुभूति रखनेवाले बहुतसे लोग ईसाई है। श्री एन्ड्रयूज पक्के ईसाई हैं; भारतमें उनसे अधिक सच्चा कोई दूसरा कार्यकर्ता नहीं हो सकता। वे दीन-बन्धु कहे जाते हैं और यह ठीक ही है। मुझे आशा है कि अजमेरकी कांग्रेस कमेटी इस मामलेकी ओर ध्यान देगी और इन ईसाई देशभाइयोंकी सभी प्रकारसे सहायता करेगी। [अंग्नेजीसे] यंग इंडिया, २८-७-१९२१ २१८. उचित पश्चात्ताप और उससे शिक्षा मुझे अभी-अभी श्री याकूब हसनका निम्न करुण पत्र प्राप्त हुआ है : मैं अब अनुभव करता हूँ कि मैंने दुर्बलताके क्षणमें एक गम्भीर अविवेक- पूर्ण कार्य कर डाला है। जबसे मुझे अपनी भूलकी महत्ताका भान हुआ है तबसे मेरे हृदयमें ऐसी गहरी पीड़ा हो रही है कि उससे मैं पागल ही हुआ जा रहा हूँ। मुझे आपसे आन्दोलनके मुखियाके रूपमें क्षमा मांगनी चाहिए, और मैं बहुत ही नम्रतापूर्वक क्षमा मांग रहा हूँ। आप मुझे मेरे मार्गदर्शक और नेताके रूपमें जितना बुरा-भला कहा जाना चाहिए उतना बुरा-भला कहें और इस भूलकी जितनी कड़ी सजा दी जानी चाहिए उतनी कड़ी सजा दें; परन्तु मुझे आशा है कि आप भगवान्के नामपर मेरे इस पाप-कर्मके लिए मुझे क्षमा कर देंगे। मै इससे पहले तक जिस पवित्र कार्यको अपने विवेकके अनुसार ईमानदारी और सचाईसे करनेका प्रयत्न करता रहा हूँ यदि उसे मेरे इस कार्यसे कोई क्षति पहुँची हो तो मैं उसका प्रायश्चित्त करूँगा और इस प्रकार उस क्षतिको पूरा करूँगा और ईश्वरके सम्मुख अपना मुख उज्ज्वल करूंगा। इस पत्रमें सचाईकी झलक है; और इससे सभी आलोचना व्यर्थ हो जाती है। मैंने श्री याकूब हसनको यह लिख दिया है कि उनको क्षमा करना मेरा काम नहीं है। कौन जानता है, किसी संकटकी घड़ी में उनसे भी अधिक दुर्बल सिद्ध होऊँ ? उनको केवल ईश्वर ही क्षमा कर सकता है, क्योंकि केवल वही हमें अच्छी तरह Gandhi Heritage Portal