पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/४८६

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४५४ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय जानता है। अनेक देशोंमें और अनेक जातियोंकी मार्फत ईश्वरने अपनी वाणीमें हमें यह आश्वासन दिया है, 'जब मनुष्य मेरे सामने शुद्ध और विनम्र हृदयसे अपनी दुर्बलताको स्वीकार कर लेता है तब मैं उसे क्षमा कर देता हूँ।' हम स्वयं दुर्बल है और इसलिए जिसने अपनी दुर्बलता स्वीकार कर ली है हमें ऐसे भाईपर पत्थर नहीं चलाना चाहिए। परन्तु श्री याकूब हसनकी दुर्दशासे हम सभीको संकटके प्रति सचेत हो जाना चाहिए, क्योंकि यद्यपि विजय निकट दिखाई देने लगी है तथापि उसके पूर्व संघर्षका जो अन्तिम दौर आयेगा, और वह आयेगा अवश्य, उसको सहन न कर सकनेका भय होता है। हमें यह निश्चय कर लेना चाहिए कि यह सरकार वास्तवमें लोगोंके संकल्पके सामने झुकने से पहले हमें बार-बार अच्छी तरह परखेगी। हमें हजारोंकी संख्यामें भारतकी जेलोंको भरनेके लिए तैयार हो जाना चाहिए। उनके भीतर हैजा फैले तो भी हम चिन्ता न करें, हमें ऐसी तैयारी रखनी चाहिए। परन्तु दासताके जिस पुराने नैतिक हैजेसे हम पीड़ित है उसकी तुलनामें वास्तविक हैजा एक साधारण बात है। यदि शेरवानीके अभियोगकी हास्यास्पद कार्रवाईकी खबर सही है तो उन्हें बिलकुल निर्दोष होनेके बावजूद सजा दी गई है। संयुक्त प्रान्तमें कोई-न-कोई रोज ही जेल जा रहा है। अभी आन्ध्रसे इस आशयका तार आया है कि गुन्टूरमें दो कार्यकर्ताओंको एक-एक वर्षकी सजा हो गई है। उनमें से एक बैरिस्टर है। इस तारको भेजनेवाले श्री वेंकटप्पैयाका कहना है कि अभी दमन बढ़नेकी आशंका है। आगे-पीछे यह तो होना ही था। यदि हम इस प्रहारका सामना दृढ़तासे करेंगे तो इस वर्ष स्वराज्य निश्चय ही मिल जायेगा। परन्तु केवल दुर्बलताका ही भय नहीं है। भय यह भी है कि लोग उत्तेजित किये जानेपर और बदलेकी कार्रवाई करने में कहीं भड़क न जायें। लोगोंकी कष्ट- सहन करनेकी अयोग्यता या अनिच्छाकी अपेक्षा उनके पागल हो जानेका भय अधिक गम्भीर है। भारत-भरमें प्रत्येक कार्यकर्ताका यह कर्तव्य है कि वह हिंसाको रोकनेका प्रयत्न करे, भले ही इस प्रयत्नमें उसकी जान ही क्यों न चली जाये। भारत भविष्यमें किये जानेवाले व्यापक दमनका जो सबसे अच्छा उत्तर दे सकता है वह यह कि बुद्धिमान अर्थशास्त्री हमारे सामने जिन आँकड़ोंको प्रस्तुत करें हम उनकी बिलकुल चिन्ता न करें और सभी प्रकारके विदेशी कपड़ेका त्याग कर दें। यदि हम कृतसंकल्प हो जायें तो हम अपने लिए आवश्यक पूरा कपड़ा तीन महीने में ही हाथसे सूत कातकर और उसे हाथसे बुनकर तैयार कर सकते हैं। क्या हममें स्वराज्य प्राप्त होने तक, खादीसे सन्तोष कर लेनेका संकल्प-बल है ? [अंग्रेजीसे] यंग इंडिया, २८-७-१९२१ Gandhi Heritage Porta