पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५०९

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२३२. भाषण : बम्बईमें स्वदेशीपर । १ अगस्त, १९२१ महात्मा गांधीने कहा : आप लोग इतनी बड़ी संख्यामें यहाँ भाषण सुनने नहीं बल्कि लोकमान्य तिलककी पूजा करने आये हैं। आप यहाँपर तिलक महाराजको श्रद्धांजलि चढ़ाने आये हैं। मेरा सन्देश तो अखबारोंमें छप जायेगा, आप उसे वहाँ पढ़ सकते हैं। ऐसे लोगोंको जो एक वर्षके भीतर ही स्वराज्य प्राप्त करने के लिए कृत- निश्चय है, यहाँ इतनी बड़ी संख्यामें देखकर मेरा हृदय फूला नहीं समा रहा है। हमें इसी वर्ष स्वराज्य प्राप्त करने के लिए अधिकसे-अधिक काम करना है। इसीके लिए हमने ३० जूनसे पहले सभी प्रकारके विदेशी कपड़ोंका बहिष्कार करनेकी शपथ ली है। यह देखना हमारा कर्तव्य है कि हमने अपनी शपथको निष्ठापूर्वक निभाया है कि नहीं। मैं इससे अधिक और कुछ नहीं कहना चाहता क्योंकि ज्वार आ गया है और तेजीके साथ आगे बढ़ता चला आ रहा है। जिस धैर्य के साथ आप डटे हुए हैं उससे मालूम पड़ता है कि आप अहिंसक और असहयोगी हैं। मुझे आशा है कि हिन्दू मुसलमान, पारसी, सिख, ईसाई और यहूदी सभी ली हुई शपथको निभायेंगे। तिलकने आप लोगोंको सिखाया है कि स्वराज्य आपका जन्मसिद्ध अधिकार है, इसलिए केवल स्वतन्त्रता प्राप्त करके ही आप अपने देशके प्रति अपना कर्तव्य निभा सकेंगे। मेरी आप लोगोंसे अपील है कि आप चुपचाप यहाँसे घर जायें और स्वदेशी-व्रतका न केवल इस समय बल्कि सदैव पालन करते रहें। मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप स्व- राज्य प्राप्त करनेपर भी स्वदेशीको न छोड़ें। [अंग्रेजीसे] बॉम्बे क्रॉनिकल, २-८-१९२१ २३३. पूजाका अधिकार जिसपर हमारा अधिकार न हो यदि हम ऐसा कार्य करें तो वह फलीभूत नहीं होता। धोबी हजामत करने बैठे तो खून निकाल दे। वकील इलाज करने लगे तो बंटा ढार हो जाये। अगर धूर्त मन्दिर जाये तो उसे देवीका प्रसाद अवश्य मिल जायेगा किन्तु भक्ति-भावनासे विहीन प्रार्थनाको प्रभु स्वीकार नहीं करता। उसी तरह अगर हम अधिकार बिना तिलक महाराजकी पूजा करेंगे तो वह कदापि स्वीकृत नहीं होगी। जिसे हिन्दुस्तान अच्छा ही नहीं लगता, जो हिन्दुस्तानकी आबोहवासे अकुलाता है, जिसे हिन्दुस्तानके रीति-रिवाज जंगली लगते हैं, हिन्दुस्तानी ढंगके भोजनको देखकर जो मुंह बिचकाता है, हिन्दुस्तानकी पोशाक जिसे काटनेको Gandhi Heritage Portal