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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्होंने कहा :

जो जिला, नगर या गाँव अपना कर्त्तव्य पूरी तरह निभाता है उसके बारेमें कहा जा सकता है कि उसने स्वराज्य प्राप्त कर लिया है। हम ऐसा स्वराज्य चाहते हैं जिसमें सभी व्यक्तियोंको, भंगियों तकको, समान अधिकार प्राप्त हों। जिस दिन आपको कमजोर, दुःखी और जरूरतमन्द लोगोंकी मददके लिए अपने कटिबद्ध हो जानेकी प्रतीति हो जायेगी उसी दिन आपको लगेगा स्वराज्य करीब आ रहा है। स्वराज्य हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच स्थापित एकताके कारण ही सम्भव हो गया है। हमारी कमजोरीकी वजहसे ही मुट्ठीभर यूरोपीय हमपर शासन कर रहे हैं। हमारे विचारोंमें एक बड़ी तब्दीली आनी चाहिए और हमें यह महसूस करने लगना चाहिए कि अपना राज खुद चलाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। यह तो अंग्रेज भी मानते हैं कि भारतमें उनका साम्राज्य हमारी कमजोरीपर टिका है। सर आर० क्रेडॉकने एक बार कहा था कि अंग्रेज भारतपर तभीतक राज्य कर सकेंगे जबतक कि भारतकी जनता उनको राज्य करने देगी।

गांधीजीन आगे बोलते हुए कहा कि जिन वकीलोंने अपनी वकालत बन्द कर दी है, जिन विद्यार्थियोंने सरकारी स्कूल छोड़ दिये हैं उनको अब दूसरोंके सामने एक अच्छी मिसाल पेश करनी चाहिए। उनका चरित्र ऐसा होना चाहिए कि दूसरे उनकी ओर खिंच जायें। पंडित मोतीलाल नेहरू और श्री चित्तरंजन दासन बड़ी शानदार मिसालें हमारे सामने रखी हैं। भारतको स्वाधीनताके लिए अन्ततक लड़नेवाले दस हजार सच्चे सिपाही चाहिए।

नगरकी सजावटका उल्लेख करते हुए गांधीजीने कहा कि इससे मुझे खुशी तो हुई लेकिन इस बातसे बड़ा दुःख हुआ कि सजावटके लिए विदेशी कपड़ेका इस्तेमाल किया गया है। इसकी जगह खद्दरका इस्तेमाल किया जाना चाहिए था।

कांग्रेस कमेटीकी सिफारिशोंका जिक्र करते हुए उन्होंने श्रोताओंसे पूछा:जब हर साल दारूपर सत्रह करोड़ रुपये बर्बाद किये जाते हैं तब क्या कांग्रेसके लिए एक करोड़ रुपये इकट्ठे करना बहुत मुश्किल है ?

चरखेके बारेमें उन्होंने कहा कि चरखा स्वराज्यका प्रतीक है। आर्थिक दृष्टिसे वही सर्वोत्तम साधन है । कताई-बुनाईके जरिये हर आदमी ईमानदारीके साथ काम करके दो रुपये रोज कमा सकता है। इसीलिए चरखेका चलन हर परिवारको अपने यहाँ शुरू करना चाहिए। आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि स्वयंसेवकोंको दारूबन्दीका अपना आन्दोलन जारी रखना चाहिए और इस तरह देशको दारूकी बुरी लतसे छुटकारा दिलाना चाहिए। अन्तमें उन्होंने श्रोताओंसे अनुरोध किया कि वे तिलक स्वराज्य-कोषमें भरसक ज्यादासे-ज्यादा चन्दा दें ।

[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, २३-४-१९२१