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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पूरी शुद्धि नहीं होगी; और जिस तरह थोड़ा-सा मैल भी जहरीली हवा पैदा कर सकता है उसी तरह थोड़ा-सा बचा हुआ विदेशी कपड़ा भी भारी नुकसान पहुँचा सकता है। इसलिए मुझे उम्मीद है कि क्या बम्बई और क्या अन्य शहर, सभी जगहोंसे विदेशी कपड़े रूपी मैलको झाड़-पोंछकर निकाल दिया जायेगा। हमारे घरोंसे यह मैल जबतक पूरी तरह साफ नहीं हो जाता तबतक विदेशी कपड़े रूपी महामारीके फिरसे फैलनेका भय बना रहेगा। यदि हम स्वराज्य प्राप्त करना ही चाहते हैं तो विदेशी कपड़ा हमें हमेशा के लिए असह्य होना चाहिए। और यह बात कपड़ेको जान-बूझकर जलानेसे ही उत्पन्न हो सकती है।

जय अथवा पराजय

बहुत समय पहले एक पत्र लेखकने मुझसे पूछा था कि दक्षिण आफ्रिकामें जैसी विजय मिली थी, क्या यहाँकी विजय भी वैसी ही होगी। मुझे इस प्रश्नमें जितनी कटुता दिखाई दी उतना ही अज्ञान भी दिखाई पड़ा। दक्षिण आफ्रिकाका सवाल क्या था, इसकी पत्र लेखकको कोई जानकारी ही न थी। दक्षिण आफ्रिकामें लड़ाई अमुक कानूनके विरुद्ध थी। उसमें हमने सम्पूर्ण विजय पाई। एशियाई अधिनियम रद्द करो, प्रवास सम्बन्धी अधिनियममें से रंगभेद निकालो, हिन्दू और मुस्लिम विवाहोंको मान्यता प्रदान करो, और तीन पौंडी करको रद्द करो——दक्षिण आफ्रिकी सरकारके सम्मुख हमारी एकके बाद एक उपर्युक्त माँग थी और वहाँकी सरकारको ये सब माँगें स्वीकार करनी पड़ीं।[१]

इसे मैं पूरी विजय मानता हूँ। लेकिन सबसे बड़ी विजय तो यह हुई कि सत्याग्रहके कारण ही भारतीय जनता दक्षिण आफ्रिकामें अपने पैर जमा सकी। इसीसे अन्य उपनिवेशोंमें भारतीयोंपर होनेवाला आक्रमण कुछ धीमा पड़ गया। इसीसे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको समस्त संसारने जाना। एशियाई अधिनियम भारतीयोंका समूल नाश करनेकी दिशामें पहला कदम था। उसके अस्तित्वमें आते ही हमने उसे उखाड़ फेंका। ठीक यही बात यहाँकी लड़ाईके सम्बन्धमें समझनी चाहिए। खिलाफतकी माँग स्वीकृत हो जानेके बाद खिलाफतपर कभी कोई संकट नहीं आयेगा, सो बात नहीं है। स्वराज्य मिलनेके बाद हम फिर कभी उसे नहीं खोयेंगे, ऐसी बात नहीं है। अमुक वस्तुको हम तबतक अपने पास रख सकते हैं जबतक उस वस्तुको प्राप्त करनेमें सहायक साधन हमारे पास मौजूद हैं। आत्मबलसे प्राप्तकी हुई वस्तुको हम आत्मबलके क्षीण हो जानेपर अवश्य खो बैठेंगे। संयमसे प्राप्त आरोग्य नियमोंका उल्लंघन करने और मनमाना भोजन करनेसे तुरन्त नष्ट हो जायेगा।

सत्याग्रह और उसकी शाखा असहयोग ऐसे शस्त्र हैं जिनके उपयोगसे पराजयकी कोई गुंजाइश ही नहीं है। जो मृत्यु-पर्यंत लड़ते हैं उनकी पराजय कैसी? जीवित व्यक्तिका 'पराजित' कहलाना उसकी पराजय है। रणक्षेत्रमें काम आये योद्धाको पराजित कौन कह सकता है? जो सत्याग्रही अपने आग्रहको छोड़ता ही नहीं उसे

  1. देखिए खण्ड १२।