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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वैर इसी तरह पनपा और बढ़ा। उपर्युक्त महिलाको सताने, उसकी जमीनपर कब्जा जमानेमें अपराध बनियोंका था। महिलाने अगर कोई भूल की भी थी तो बनियोंका फर्ज था कि वे उसे बरदाश्त करते; इसके विपरीत उन्होंने एक चींटीके विरुद्ध सेना लेकर चढ़ाई कर दी। मुसलमानोंके दोषको मैं समझ सकता हूँ। लेकिन उन्होंने गम्भीर भूल उनका फर्ज था कि जिन बनियोंने अपराध किया था उन्हें ढूँढ़ निकालते और पंचोंके सामने ले जाते। पंच न मिलते तो उन्हें पड़ोसकी कांग्रेस कमेटी अथवा खिलाफत समितिके सम्मुख पेश करना चाहिए था और राहत प्राप्त करनी चाहिए थी। वैसा न करके उन्होंने समस्त बनियोंको सजा देनेका अन्याय किया और जो अपराध बनियोंने महिलाके प्रति किया था वही अपराध मुसलमानोंने बनियोंके प्रति किया। सौभाग्यसे श्री मोहनलाल पण्ड्या वहाँ पहुँच गये और झगड़ा निपट गया। इसमें दोनों पक्षके अपराधियोंने दुर्बलको दबानेकी नीतिको पसन्द किया। जबतक एक भी पक्ष ऐसी हरकत करता है तबतक झगड़ेको जड़मूलसे नष्ट नहीं किया जा सकता। स्वराज्यका असली अर्थ यही है कि निर्बलकी रक्षा करें और बलवानसे न डरें। बनियोंको चाहिए था कि वे भूलको स्वीकार करते और तिसपर भी अगर मुसलमान उन्हें मारते तो मारको सहन कर लेते। घरोंमें घुस जानेका मतलब यह हुआ कि वे दुर्बल हैं और स्वराज्यके अयोग्य हैं। इसमें सन्देह नहीं कि किसी समय हमें मार खानी पड़ेगी। हर बार भयके कारण घरोंमें घुस जाना, यह कोई स्वराज्यका लक्षण नहीं है। शान्तिमय असहयोग जड़ी-बूटी है। उन्हें मुसलमान भाइयोंको शान्तिसे समझानेकी नीति अपनानी चाहिए थी। शान्ति अर्थात् कायरता नहीं, शान्ति अर्थात् मार पड़नेपर भी निर्भय हो उसका विरोध न कर उसे सहन करनेकी शक्ति। शान्तिमें जो बल है वह तलवारमें नहीं है, यह सत्य बात ऐसी है जिसे प्रत्येक व्यक्ति सोच-विचार करनेपर भली-भाँति समझ सकता है।

भोजा भगत मोची थे?

मास्टर भोजाजी और एक अन्य सज्जनने पत्र लिखकर मुझे बताया है कि भोजा भगत लेऊवा कणबी होने चाहिए। एक भाईने निश्चयपूर्वक कहा है कि वे कणबी ही थे। अपनी इस मान्यताके लिए कि वे मोची थे मेरे पास सिवाय इसके कोई प्रमाण नहीं है कि बचपनमें शिक्षा के दौरान उनके एक सम्बन्धी किसी व्यक्तिको मेरे पास लाये थे। उनके उस सम्बन्धीसे मैंने यह भी पूछा था कि 'क्या आप अब भी मोचीका धन्धा करते हैं ?' जहाँतक मुझे ध्यान है उन्होंने इसका उत्तर नकारात्मक दिया था। लेकिन भोजा भगत मोची न थे, ऐसा उन्होंने नहीं कहा। अगर मैंने भूल की है तो पाठक मुझे क्षमा करेंगे। मुझे विश्वास है, मैंने उनपर मोची होनेका जो आरोप लगाया है उससे उनकी आत्मा दुःखी नहीं होगी। मेरा लेख लिखनेका जो आशय था, वह इस भूलके बावजूद कायम है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-८-१९२१