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१४. भाषण : बलसाड़की सभामें

२० अप्रैल, १९२१
 

इन पारसी भाईने मधुर गुजरातीमें जो शब्द कहे वे याद रखने योग्य हैं। हिन्दू-मुस्लिम एकताका अर्थ ही यह है कि हिन्दुस्तानकी छोटी-बड़ी कौमें स्वधर्मका पालन करते हुए भी स्वतन्त्रतापूर्वक रह सकें । हिन्दू-मुस्लिम एकतामें मानवजातिके तीस करोड़ व्यक्तियोंका बल समाहित है। लेकिन जिस तरह यूरोपके बड़े राष्ट्र, छोटे राष्ट्रोंको बचानेके बहाने उन्हें निगल गये अगर इस एकताका भी यही अर्थ होता तो ५२ वर्षकी आयुमें मैं इस तरह जगह-जगह न भटकता। मुझे न तो राज्य चाहिए और न मुझे धन-वैभवकी ही कोई अभिलाषा है । इनसे मेरा जी भर चुका है। मेरी आत्मा तो कहती है कि मेरी प्रवृत्ति ऐसी है जिसमें हिन्दुस्तानकी छोटीसे-छोटी कौम भी निर्भयतापूर्वक रह सकती है। पारसी, सिख, यहूदी और ईसाईको कोई दुःख न दे सके, एक अबलापर कोई कुदृष्टि न डाल सके -- यह स्वराज्यका अर्थ है। यह स्वराज्य कोई हमें देनेवाला नहीं है। यह न तो ऊपरसे गिरनेवाला है और न जमीनसे फूट निकलनेवाला है। उसकी तो हमें अब स्थापना करनी है। पारसी भाइयोंको [ निश्चय करनेमें । समय लेनेका अधिकार है। वे अवश्य देखें कि ये दो कौमें क्या करती हैं; लेकिन मुझे इस बातका पक्का विश्वास है कि वे निरापद हैं। इसीलिए मैंने उन्हें स्वराज्य-यज्ञमें बलिदान देनेके लिए आमन्त्रित किया है।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ५-५-१९२१

१५. भाषण : सोसोदरामें

२१ अप्रैल, १९२१
 

आज आप अपने सहोदर भाइयोंको अपने बीचमें जगह देकर पवित्र हो गये हैं,लेकिन इस पवित्रताको हमेशा बनाये रखना है। दुधारू गायको लात क्यों मारी जाये यह सोचकर मेरी सेवा प्राप्त करनेके लिए, मुझे खुश करनेके लिए आप इसे न करें बल्कि अपना धर्म समझकर करें। मैं जो कुछ सेवा करता हूँ सो धर्म समझकर ही

१. गांधीजीकी यात्राके विवरणसे उद्धृत ।

२. पारसी कौमकी ओरसे बोलते हुए इन्होंने कहा था : “स्वतन्त्रताके इस संग्राम में पारसी हिन्दुओं और मुसलमानोंके साथ हैं लेकिन वे यह सोचकर इसमें शामिल होनेमें थोड़ा हिचकिचाते हैं कि क्या स्वराज्य में उनके हितोंकी रक्षा की जायेगी । ”

३. गांधीजीकी यात्राके विवरणसे उद्धृत ।