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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वर्षं कमसे-कम साढ़े सात लाखकी आमदनी हो सकती है। यदि काठियावाड़की बहनें केवल आठ ही महीने भजन गाते हुए चरखा कातें तो हर साल साठ लाख रुपये पैदा कर सकती हैं। इसके लिए आपको एक पाई भी खर्च नहीं करनी पड़ेगी। ऐसे आसान उपायसे यदि काठियावाड़के लोग धन कमा सकें तो क्या आप उसको बुरा मानेंगे? क्या इसका मजाक उड़ायेंगे?

यदि शरीरपर मोटी खादीकी बंडी और सिरपर बड़ी पगड़ी बांधनेवाले काठियावाड़की मेघवाल जातिके लोगोंमें से एक लाख व्यक्ति भी करघे चलाने लगें तो वे हर महीने कमसे-कम बीस लाख रुपया कमा सकते हैं। यदि इस तरह आठ महीने बुनें तो साल-भरमें एक करोड़ साठ लाख रुपया घरमें आये। क्या आप दीर्घदृष्टिसे देख समझकर इतनी बरकत देनेवाले उद्योगको पूरा-पूरा प्रोत्साहन नहीं देंगे?

आपसे तो मैं यह आशा करता हूँ कि आप अपने दरबारमें भी दीन-हीन लोगों द्वारा बुनी हुई खादीकी प्रतिष्ठा करेंगे। दरबारी पोशाक खादीकी हो और आप स्वयं भी अपनी प्रजाकी बनाई खादी पहनकर भूषित हों।

काठियावाड़की प्रजा तो भूखों मरे और मैनचेस्टर अथवा जापानके लोग आपके पैसोंपर गुलछर्रे उड़ायें, यह राज-न्याय नहीं है। आपके शास्त्रवेत्ता लोग आपको यह बात समझायेंगे। यदि आपको मलमल चाहिए तो अच्छी रुई पैदा कराइए, महीन सूत कतवाइए और कपड़ा बुननेवालों को प्रोत्साहन दीजिए।

काठियावाड़के पहाड़ोंमें रहनेवाले राजाओंको आमोद-प्रमोदकी क्या आवश्यकता है? कुत्तोंके झुण्ड वे अपने पास किसलिए रखें? वे तो प्रजाके लिए अपने प्राण दें। प्रजाके दुःखसे दुखी हों और प्रजाको खिलाकर ही आप खायें। राजा बनिया बन जाये और ब्राह्मण नाटक करते फिरें तो धर्मकी शिक्षा कौन दे और रक्षा कौन करे? मैं यह नहीं चाहता कि काठियावाड़के लोग आपके राज्योंमें रहते हुए अंग्रेजी राज्यके खिलाफ आन्दोलन करें और आपकी स्थितिको नाजुक बनायें। आपकी नाजुक स्थिति मेरे ध्यानमें है। आपके प्रति मेरी सहानुभूति है। आप भले ही असहयोगी न हों, परन्तु मैं आपसे नम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूँ कि आप स्वदेशीको एक विशेष अंग ही समझिए और प्रजाको सहायता देकर स्वतन्त्रतापूर्वक उसका उत्कर्ष कीजिए।

और भी एक निवेदन है। काठियावाड़में शराबकी दुकानोंका होना कैसे सहन हो सकता है? क्या आपको भी शराबके द्वारा कुछ आमदनी करनेकी आवश्यकता है? जब प्रजा खुद ही शराबखोरी छोड़नेके लिए प्रयत्न कर रही है तब मैं तो आपके दरबारसे भी शराबकी बोतलोंके बहिष्कार की आशा रखता हूँ। श्री रामचन्द्रने एक धोबीकी बात सुनकर सती सीताका त्याग कर दिया था, तब अपनी प्रजाकी इच्छाको जानकर क्या आप शराबको काठियावाड़से नहीं निकाल सकते?

और आपकी ट्रेनोंमें अन्त्यजोंके लिए अलग डिब्बे हों, उन्हें टिकट मिलनेमें कठिनाई हो, वे धक्के खायें, यह भी कैसे सहन हो सकता है? लोगोंको एकत्र करके आप उनके साथ विचार कीजिए और उन्हें समझाइए कि भंगी-चमारोंके साथ जो