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भेंट : 'आज' के प्रतिनिधिसे

तो जीवन भारी हो जायेगा। हम लोग स्वावलम्बन भूल गये हैं, हम लोगोंको यह सीखना है कि मरना किस तरह चाहिए। यदि गोली चले तो उसे हमें अपनी छातीपर रोकना चाहिए न कि उसे पीठ देनी चाहिए। यदि अंग्रेज हमारे देशमें रहना चाहते हैं तो उन्हें सहयोगी तथा सेवकों की तरह रहना सीखना पड़ेगा। वे अब मालिककी हैसियतसे यहाँ नहीं रह सकते। महिलाओंको विदेशीका बहिष्कार तथा चरखा चलाना अपना धर्म समझना चाहिए, ताकि यदि मैं जेलमें रहूँ या फाँसी चढ़ा दिया जाऊँ, तब भी स्वराज्य अवश्य मिले।

आज, ११-८-१९२१

 

२४६. भेंट : 'आज' के प्रतिनिधिसे

९ अगस्त, १९२१

प्रश्न : यदि स्वदेशी वस्त्रका मूल्य बढ़ता जाये और विदेशीका घटता जाये तो उस हालत में हमारा धर्म क्या है?

उत्तर : स्वदेशी व्रतके माने यही हैं कि यदि विदेशी हमें मुफ्त भी मिले तो भी हम नहीं ले सकते। जैसे रोटी बहुत मँहगी भी हो तो भी हिन्दू गोमांस नहीं खा सकता।

यदि विदेशी सूतसे भारतमें कपड़ा तैयार किया जाये तो वह विदेशी होगा कि स्वदेशी?

वह विदेशी है।

यदि किसी मिलमें धन भारतीयोंका लगा हो परन्तु उसके मैनेजर और उसका प्रबन्ध विदेशियोंके हाथमें हो तो वह स्वदेशी कही जायेगी या विदेशी?

वह विदेशी कही जायेगी। स्वदेशी वही है जिसमें धन और प्रबन्ध दोनों भारतीयोंका हो। स्वदेशी मिलोंके बने कपड़े गरीबोंके वास्ते छोड़ दिये जाने चाहिए। कांग्रेसके कार्यकर्त्ताओंको शुद्ध खादी पहननी चाहिए।

पहली अगस्तको बनारसकी सभामें पुलिसकी तरफसे जो ज्यादती हुई थी उसके सम्बन्धमें महात्माजीने कहा कि उनको क्षमा करना चाहिए नहीं तो हम स्वराज्यके योग्य नहीं हैं।

आज, १०-८-१९२१