पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५३५

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भाषण : इलाहाबादकी सभामें ५०३ आप अहिंसा और असहयोगके अर्थको भली-भाँति नहीं समझ सके हैं। असहयोगका अर्थ निष्क्रिय बैठे रहना नहीं है। इसका अर्थ है अपनी शक्तिको संगठित करना, क्योंकि असहयोगके लिए महान शक्तिको आवश्यकता है। मैं ब्रिटिश झंडे यूनियन जैक के सामने, जिसके सामने फौजी कानूनके दिनोंमें पंजाबके बालकोंको अपना सिर झुकाना पड़ता था, तबतक सिर नहीं झुकाऊँगा जबतक सरकार अपने पिछले अत्या- चारोंके लिए पश्चात्ताप प्रकट करके क्षमा नहीं माँगती। आगे बोलते हुए गांधीजीने संयुक्त प्रान्तकी स्थितिका उल्लेख किया और कहा : छोटे-छोटे बालक जेल भेजे जा रहे हैं और तिसपर भी यह घोषित किया जा रहा है कि संयुक्त प्रान्तमें कहीं कोई दमन नहीं हो रहा है। संयुक्त प्रान्तकी सरकार पंजाब सरकारसे कहीं अधिक चालाक है। उसने बड़े-बड़े नेताओंको नहीं छुआ; क्योंकि उसे डर था कि उनको गिरफ्तारीसे प्रान्तमें अशान्ति फैल जायेगी, किन्तु वह छोटे बालकों- को कालकोठरीमें बन्द करनेकी सजा दे रही है। यह दमनका भयानक तरीका है। दमनकी प्रणालीमें लोगोंको भयभीत करना तथा उन्हें नैतिक रूपसे गिरा देना भी आता है। किसानोंपर भी इसी प्रकारका दबाव डाला जा रहा है। उन्हें अमन-सभाका सदस्य बनने तथा असहयोग आन्दोलनसे अलग रहनेको मजबूर किया जा रहा है। इसके लिए मैं उच्च अधिकारियोंको दोषी ठहरानेको तैयार नहीं, क्योंकि गवर्नर और उनके सहकारी यह बात जानते हैं या नहीं, इसका मुझे अभीतक निश्चय नहीं है। मैं तो अब भी महमूदाबादके राजा और श्री चिन्तामणि' तथा अन्य लोगोंका सम्मान करता हूँ। किन्तु उनके हाथ भी पापसे पंकिल हो गए है। भले ही उन्होंने वे पाप जान-बूझकर या स्वेच्छासे न किये हों। अब वे सरकारी सदस्य बन गये हैं, इसलिए उनके दिमाग बदल गए हैं। उन्होंने घोषित किया है कि स्वयं असहयोगी ही अपने विरोधियों- के खिलाफ हिंसाका प्रयोग कर रहे हैं। मैं इस आरोपसे एकदम इनकार नहीं करता और इसीलिए मैंने अलीगढ़ तथा मालेगाँवकी घटनाओंपर पश्चात्ताप व्यक्त किया है और हिंसक कार्योंकी निन्दा की है। फिर भी मेरा विचार है कि कुल मिलाकर असहयोगका कार्य शान्तिपूर्ण ढंगसे हो रहा है। श्री गांधीने आगे कहा : मैं चाहता हूँ कि शान्तिकी यह भावना प्रगति करे। सरकार आप लोगोंको जेलमें डाले या गोलीसे मारे तब भी आपको सरकारी अधि- कारियोंको बुरा-भला नहीं कहना चाहिए और न उनका सामाजिक रूपसे बहिष्कार ही करना चाहिए। जब आप अपने ऊपर इतना नियन्त्रण प्राप्त कर लेंगे तब समझिए कि स्वराज्य आपका है और तभी पंजाब और खिलाफतके सम्बन्धमें आप न्याय प्राप्त कर सकेंगे। किन्तु ऐसा तबतक सम्भव नहीं जबतक कि हिन्दू और मुसलमान एक नहीं हो जाते। बकरीद आ रही है। यदि हिन्दू गायको बचाना चाहते १. सर चिराचुरी पशेश्वर चिन्तामणि (१८८०-१९४१); प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक तथा राजनीतिज्ञा इलाहाबादके प्रसिद्ध दैनिक लीडरके सम्पादक । Gandhi Heritage Portal