पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५३६

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। सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय हैं तो वे खिलाफतको पवित्र अग्निमें अपनी बलि दे दें, किन्तु वे सौदेबाजीको भावनासे ऐसा न करें। वे मुसलमान भाइयोंसे गोवध न करनेका आग्रह भी न करें। स्वदेशीके प्रश्नपर आते हुए उन्होंने कहा : स्वदेशीकी वकालत करनेका अर्थ है प्रतिवर्ष ६० करोड़ रुपयेकी बचत, भुखमरीसे पीड़ित अपने देशवासियोंके लिए भोजन तथा अपनी स्त्रियोंकी पवित्रताको रक्षा। किन्तु इन सबसे बढ़कर इसका उद्देश्य है सविनय अवज्ञाके लिए तैयारी करना। यदि आप स्वदेशीके मुद्देको सितम्बरतक सफल बना देते हैं तो मैं समझूगा कि आप सरकारको अन्तिम चेतावनी देनेके लिए पर्याप्त समर्थ हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त इसका अर्थ दुनियाको यह बतला देना भी होगा कि भारतने अपनी शक्तिको संगठित कर लिया है। मैं चाहता हूँ कि आप अपने विदेशी वस्त्रोंको जला दें। यदि आप स्मरनाकी सहायता करना चाहते हैं तो आप अपने उतारे कपड़े न भेजकर, वहाँ नकद या नये कपड़े भेजें। किन्तु यदि आप अपने काममें लाये हुए कपड़े ही भेजना चाहते हैं तो भी मैं आपत्ति नहीं करूँगा। किन्तु आपको तो अपने सभी विदेशी वस्त्रोंका त्याग करना ही होगा। आप अखिल भारतीय कांग्नेस कमेटीके निर्णयानुसार काम करें और करघे तथा चरखेको अपनायें । अर्थात् आपको उन कपड़ोंपर निर्भर रहना चाहिए जो आपके अपने जिलेमें तैयार होते हों। दूसरे स्थानोंसे कपड़ेका आयात नहीं करना चाहिए, चाहे आपको अर्धनग्न ही क्यों न रहना पड़े। इससे आपपर स्वदेशी वस्त्रोंका नाम लेकर विदेशी वस्त्र थोपनका खतरा मिट जायेगा। भाषणको समाप्त करते हुए उन्होंने कहा : अब मैं यहाँ एकत्र विदेशी वस्त्रोंके ढेरमें आग लगाने जा रहा हूँ। इसमें किसीके भी प्रति दुर्भावनाकी कोई बात मेरे मनमें नहीं है। प्रेम, हिंसा और शान्ति मेरा धर्म है। अन्तमें मैं आशा करता हूँ कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ इस दिशामें अधिक कार्य करेंगी इसलिए मैं उनसे अपील करता हूँ कि वे इस कार्य में हाथ बटाएँ।' [अंग्रेजीसे] लीडर, १२-८-१९२१ १. अपने भाषणके बाद गांधीजीने विदेशी वस्त्रोंके विशाल ढेरकी होली जलाई । Gandhi Heritage Portal