पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५३७

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२४९. टिप्पणियाँ बम्बई में होली विदेशी कपड़ोंकी होली जलानेके बारेमें अगर किसीको कोई शक रह भी गया था, तो परेलमें श्री सोबानीके अहातेमें जलाई गई होलीको अपनी आँखोंसे देखनेवाले सभी लोगोंका वह शक दूर हो गया होगा। हजारों दर्शकोंने वह प्रेरणादायक दृश्य देखा था। जैसे ही आगकी लपटें ऊँची उठ-उठकर कपड़ोंके अम्बारको अपने आगोश- में भरने लगी, उपस्थित दर्शकोंकी हर्ष-ध्वनिसे आकाश गूंज उठा । लगता था जैसे हमारी जंजीरें टूक-टूक हो रही हों । सभीके चेहरोंपर स्वतन्त्रताकी आभा दमक उठी। यह शानदार काम बड़े शानदार ढंगसे सम्पन्न हुआ। मुझे पूरा भरोसा है कि लोगोंके दिमागोंपर किसी भी और चीजकी इतनी गहरी छाप न पड़ी जितनी स्वदेशीकी पड़ी है। होलीमें जलाये जानेवाले कपड़े फटे-पुराने भी नहीं थे; उनमें बढ़ियासे-बढ़िया किस्मकी साड़ियाँ, कमीजें और जाकिटें थीं। मैं जानता हूँ कि कुछ माताओंने अपनी बेटियोंकी शादीके लिए सहेजकर रखे गये रेशमी वस्त्र भी जलानेके लिए दे दिये थे। इतने कीमती कपड़ोंको जला देना काफी महत्त्व रखता है। लपटोंमें झोंके गये कपड़ोंकी तादाद किसी कद्र डेढ़ लाखसे कम नहीं थी। उनमें ऐसे-ऐसे कपड़े भी शामिल थे जिनमें से एक-एककी कीमत कई सौ रुपये बैठती। मुझे पूरा यकीन है कि यह सब देशके भलेके लिए ही हुआ। ऐसी चीजें गरीबोंको बाँटना पाप होता। जरा सोचिये इन बेशकीमती कपड़ोंमें गरीब लोग कैसे लगते। अधिक न कहा जाये तो भी इतना तो कहना ही पड़ेगा कि वह दृश्य बड़ा ही बेतुका और अभिरुचिहीन लगता। सच तो यह है कि जलाये गये अधिकतर कपड़े ऐसे थे जो गरीबोंकी जिन्दगीके साथ जरा भी मेल नहीं खाते। मध्यम-वर्गके लोगोंके पहनावेमें इतनी बड़ी तब्दीली आ गई है कि गरीबोंको वे कपड़े देना बिलकुल उचित न होता। वह तो ऐसा ही होता जैसे इस्तेमालशुदा कीमती दाँतका ब्रश किसी गरीबको देना। इसलिए मुझे आशा है कि ऐसे होली-काण्ड होते रहेंगे और वे भारतके एक छोरसे दूसरे छोरतक फैल जायेंगे और वे तबतक बन्द नहीं होंगे जबतक कि एक-एक विदेशी कपड़ा भस्म नहीं कर दिया जाता या देशसे बाहर नहीं भेज दिया जाता। तमिल नारियाँ तिरुपतिसे एक मित्र लिखते हैं: मद्रासमें हमारे आन्दोलनको सफलताके मार्गमें सबसे बड़ी बाधा है मद्रासकी नारी। उनमें से कुछ तो बड़ी ही प्रतिक्रियावादी हैं और ऊँचे ब्राह्मण घरानोंकी स्त्रियोंमें से बहुत-सी ऐसी हैं जिन्हें पाश्चात्य बुराइयोंकी आदत हो गई है। वे दिनमें तीन बारसे कम काफी नहीं पीतीं; इससे और ज्यादा बार पीना 'फैशन' मानती हैं। भूषामें भी उनका यही हाल है। उन्होंने घरेलू तौरपर तैयार होने- Gandhi Heritage Portal