पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५३९

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टिप्पणियाँ अपने आचरणकी स्वतन्त्रताको बरकरार रखेंगे, चाहे फिर इसमें उनकी नौकरियोंपर भी क्यों न बन आये। यदि सभी सरकारी कर्मचारी मिलकर यह काम करें तो वे देखेंगे कि सरकार उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती। यह मुमकिन हो या न हो, पर मुझे उनसे इतनी उम्मीद जरूर है कि व्यक्तिगत रूपसे कुछ ऐसे सरकारी कर्म- चारी अवश्य निकल आयेंगे जो खादीकी टोपी पहननेसे नहीं हिचकिचायेंगे। ग्वालियरमें अन्धकार ग्वालियर स्टेशनसे गुजरते हुए, मुझे यह देखकर ताज्जुब हुआ कि लोग हमारे डिब्बेके पास आनेमें भय खाते थे। प्लेटफार्मपर स्वदेशीका नाम-निशानतक नहीं था। दूसरे स्टेशनोंकी तरह एकने भी आकर हमें अपनी विदेशी टोपी नहीं सौंपी। इसके कारणका मुझे जल्द ही पता चल गया। उस राज्यमें असहयोग आन्दोलनपर करीब- करीब प्रतिबन्ध ही लगा दिया गया है। खादीकी टोपी पहनना और घरमें चरखा रखना अगर जुर्म नहीं तो नापसन्द तो किया ही जाता है। यह तो सोचा भी नहीं जा सकता कि महाराजाके विचार भी इतने प्रतिक्रियावादी होंगे। महाराजाके साथ मेरी पूरी सहानुभूति है। वैसे सरकारका विषैला प्रभाव रजवाड़ोंमें ही सबसे ज्यादा दिखाई पड़ता है, क्योंकि रजवाड़ोंके पास कोई भी ठोस किस्मका सुधार करनेकी शक्ति ही नहीं है और उनको अक्सर ही उनकी प्रजाकी स्वतन्त्रता सीमित करनेका साधन बनने- पर विवश किया जाता है। इतना ही नहीं, प्रभुता सम्पन्न सत्ताके संरक्षणने शेष भारत- की भाँति उनको भी पुंसत्वहीन और अनुत्तरदायी बना दिया है। इसलिए जब भी कोई राजा मनमानी और दमन करनेपर तुल जाता है, तो अपने राज्यमें जुल्म ढानेकी उसकी शक्ति वाइसरायसे भी कहीं ज्यादा होती है। सरकारको वर्तमान व्यवस्थामें यह एक बहुत ही बड़ी बुराई है। फिर भी, आशा है कि ग्वालियर स्टेशनपर मुझे जो खबर दी गई उसमें काफी नमक-मिर्च लगाया गया होगा और जितना मुझे बतलाया गया है राज्यमें दमनका रूप उतना नृशंस नहीं होगा। लाहौरका अनुकरण कीजिये लाहौर नगरपालिकामें असहयोगियोंका बहुमत है। उसने प्रस्ताव स्वीकार किया है कि वहाँके सभी कोचवान और ऐसे ही अन्य कर्मचारी खादीकी टोपियां पहनेंगे और नगरपालिकाके सभी विभाग खादीका यथासम्भव अधिकतम उपयोग करेंगे। कहा जाता है कि अमृतसरके वकीलोंने अपनी पोशाकके लिए खादीको अपना लिया है। आशा है कि अन्य नगरपालिकाएँ लाहौरका अनुकरण करेंगी और देश-भरके वकील अमृतसरके वकीलोंके मार्गपर चलेंगे। देश और स्वदेशीकी खातिर वे कमसे-कम इतना तो कर ही सकते हैं। श्रमिकोंका योगदान जनताको इसका कोई अन्दाज नहीं है कि श्रमिकोंने तिलक स्वराज्य-कोषके लिए चन्दा देने में कहाँतक हाथ बँटाया है। अहमदाबादके २१ हजार मिल-मजदूरोंने इस कोषमें करीब ५४,००० रुपये दिये हैं। यह चन्दा उन्होंने निर्धारित दर, अर्थात् Gandhi Heritage Portal