पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५५४

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२६१. टिप्पणियां टोपियोंकी आहुति वम्बईने उत्साहपूर्वक जो कार्य आरम्भ किया था वह खूब जोर-शोरसे चल रहा है। हमारी यात्रामे प्रत्येक स्थानपर मलमल, मखमल और फेल्टकी टोपियोका ढेर लग जाता है। मुसलमान अपनी तुर्की और अस्तरखानी टोपियां फेकते है तो कोई अपनी पगड़ी फेकता है। एक मित्रने कहा कि हिन्दुस्तानके आन्तरिक तारके आगे टेलीफोन अथवा टेलीग्राफ किसी कामके नहीं है। पवनवेगसे हिन्दुस्तानने जान लिया है कि विदेशी कपड़ा पहनना अथवा घरमे रखना पाप है। मुझे आश्चर्य तो यह देखकर होता है कि अपने कपड़े जलानेके लिए देते समय कदाचित् ही कोई हिचकिचाता है। हमारा दल इस बारकी यात्रामे हमारे दलमे केवल अली भाई और मै ही नहीं है बल्कि कानपुरके मौलाना आजाद सोवानी तथा शिमलेके पास कोटगढमे रहनेवाले श्री स्टोक्स भी है। श्री स्टोक्स काग्रेसके सदस्य है। और पहाड़ोमे बेगार लेनेका जो रिवाज है इन्होने अपना सारा समय उसे दूर करनेके कार्यमे दे दिया है। श्री स्टोक्सने एक भारतीय ईसाई महिलासे विवाह किया है और उनके छ पुत्र है। लड़कोको उन्होने अभीतक अग्रेजीका एक अक्षर भी नहीं सिखाया है। वे सिर्फ पहाडी और हिन्दी, यही दो भाषाएँ जानते है। उन्होने भी ३१ जुलाईके यज्ञमे अपने कपड़ोकी आहुति दी। इनकी पोशाक अव धोती, कुर्ता और टोपी है और ये सब चीजे खादीकी होती है। फिलहाल अवकाश होनेसे हमारी यात्राके अनुभवोको ग्रहण करनेके विचारसे वे हमारे साथ है। श्री स्टोक्सने अनेक वर्षोसे अपना रहन-सहन सर्वथा भारतीय ही रखा है। पोशाकमें परिवर्तन इन्होने अभी-अभी किया है। जयघोष और चरण स्पर्श जयघोष और चरण-स्पर्शकी व्याधि अभीतक गई नहीं है। मुझे उम्मीद थी कि इनके सम्बन्धमें मेरे लेखोके बाद परिवर्तन हो गया होगा। लेकिन मैंने जबसे सयुक्त- प्रान्तमै प्रवेश किया है तबसे जयघोष और चरण-स्पर्शसे में घबरा गया हूँ। लोगोके उत्साहकी कोई सीमा नहीं है। लेकिन यह सारा उत्साह जयघोष और चरण-स्पर्शमें ही बह जाता दिखाई देता है। मेरे कान भी अब इतने मजबूत नही रह गये है कि मैं बहुत ज्यादा शोर सहन कर सकूँ। हजारोकी भीड़मे चरण-स्पर्श इतनी अधिक अव्यवस्था फैलाता है कि प्रतिक्षण गिर जानेका भय बना रहता है। स्वयंसेवक स्वयसेवक तो बहुत सारे लोग वन गये है लेकिन उन्हे अभीतक अपने कर्तव्यका पूरा भान नही हुआ है। उनमे शिक्षाकी कमी है। यदि हमे कानूनका सविनय भग