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लक तो आडकउनकी मेहनतसे काग्रेसका कार्य अच्छी तरह जमा हुआ दिखाई देता है। स्थानपर

काग्रेसके कार्यमे भाग लेते हुए भी वे स्वयं निरभिमानी हैं। इस तरह गुजरातसे वाहर गुजराती अपने गुणोको प्रगट कर रहे है, यह देखकर मुझे बहुत सनन्‍्तोष होता है। अगर हम हर तरहके भयसे मुक्त हो जायें तोअभी और भी ज्यादा देशसेवा कर सकते है।

शान्तिका बल प्रत्येक स्थानपर मैं यह देखता हूँ कि जहाँ लोग शान्तिके पाठकों अच्छी तरह समझ गये है वहाँ उन्होने ज्यादासे-ज्यादा तरबकी की है। भय अथवा दुर्बछताके मारे जिस शान्तिका पालन किया जाता है वह सच्ची शान्ति नही है। सच्ची शान्ति वही हो सकती है जिसमें बल और तेज हो। अग्रेजोके प्रति अपने सम्बन्धोमे जैसे हमने

शान्ति नही खोई उसी तरह हमें अपने ही अधिकारियों, सिपाहियो और पुलिस आदिके

प्रति भी नही खोनी है। एक भाई मुझसे पूछते है कि हमे परस्पर शान्ति बनाये रखनी

चाहिए अथवा सिर्फ अग्नेजोके प्रति। इस प्रश्नके लिए तो कोई गुजाइश ही नही हो सकती । हम अपने छोगोके प्रति शान्तिका पालन नहीं करेगे तो भी हार जायेगे । असहयोगी सबके प्रति विनयी रहता है, सबके प्रति शान्त और नम्न रहता है। व्यवित

जितना शूरवीर हो उसे उतना ही शान्त होना चाहिए, वह जितना बड़ा हो उसे

उतना ही नम्न होना चाहिए। उद्धत व्यक्ति, जो बात-बातमें मारने और ग्राली वेनेके लिए तैयार रहता है, अपना बल खो बैठता है। शान्ति भी सुक्ष्म वीयें है, उसको सचित करनेवाला भी प्रौढ ब्रह्मचारी और तेजस्वी बनता है। हमने ब्रह्मचर्यकी व्याख्याको , स्थुछ स्वरूप प्रदान करके जो व्यक्ति प्रतिक्षण ऋधसे भड़क उठते हैउन्हे दोषी मानना

है छोड़ दिया है। शरीर-सुखके लिए जिस तरह स्थूल ब्रह्मचर्यका पालन आवश्यक है कि हमने उसी तरह आध्यात्मिक ब्रह्मच्यंकी भी आवश्यकता है। मेरा तो विश्वास

कर दिया सहयोगियोपर क्रोध करके, प्रुलिसिकों गाली देकर अपनी लड़ाईकों रूम्बा विनम्र और विनयी है। यदि हम मन, वचन और कर्मसे सब विरोधियोके प्रत्ति शान्त, होते। रहे होते तो अभीतक समस्त सत्ताको अपने हाथमे लेकर बैठ गये पारसी बहनोंसे

' पढती है। उन्हे मै जानता हूँ किएक अच्छी सख्यामें पारसी बहने ' नवजीवन । मै जहाँतक बने सरक “ वजीवन की भाषाकों समझनेमे जरा कठिनाई होती होगी हूँ, छेकिन भाषाके करता भाषा लिखने और समुकताक्षरोकों न आने देनेका प्रयत्त े गुजरातीकों इतना ज्यादा नियमोकी एकदम उपेक्षा नहीं कीजा सकती। पारसियोन झूत करनेके समान होगा। बिगाड़ दिया है कि उनके साथ प्रतिस्पर्धा करता भाषाका लिए

कठित छगें उन्हे जाननेके इसलिए बहनोसे मेरी प्रार्थना है कि उन्हे जो शब्द तरह प्रयत्नपूर्वक पढनेके बाद य्न्हे मेहनत करे, किसीसे पूछ ले। थोडेसे अकोकों इस

फिर बिलकुल अड्चन नही होगी। कि वे भाषाकों सुधारनेका पारसी भाइयो और बहनोको यही शोभा देता है गुजराती और हिन्दू गृजराती --प्रयत्न करे। अब तो पारसी गुजराती, मुसलमान