पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- मृत्युका भय ५२५ पल-पलपर होती ही रहती है, हम क्यों खुशियाँ मनायें और क्यों शोक करें? सारे देशको यदि हम अपना परिवार मानें -यदि हमारी भावना इतनी व्यापक हो और देशमें जहाँ-कहीं किसीका जन्म हुआ हो उसे हम अपने ही यहाँ हुआ मानें तो फिर आप कितने जन्मोत्सव मनायेंगे? देशमें जहाँ-जहाँ मृत्यु हो उन सबके लिए यदि हम रोते रहें तो हमारी आँखोंके आँसू कभी सूखेंगे ही नहीं यह सोचकर हमें मृत्युका डर छोड़ ही देना चाहिए। प्रत्येक भारतवासी अधिक ज्ञानी, अधिक आत्मवादी होनेका दावा करता है। तिसपर भी मौतके सामने जितने दीन हम हो जाते हैं उतने और लोग शायद ही होते हों। और उसमें भी मेरा खयाल है कि हिन्दू लोग जितने अधीर हो जाते हैं उतने भारतके दूसरे लोग नहीं होते। अपने यहाँ किसीका जन्म होते ही हमारे घरोंमें आनन्द-मंगल उमड़ पड़ता है और जब कोई मर जाता है तब इतना रोना- पीटना मचता है कि आसपासके लोग हैरान हो जाते हैं। यदि हम स्वराज्य लेना चाहते हैं और अपनेको उसके योग्य सिद्ध करना चाहते हैं तो हमें मृत्युका भय बिलकुल छोड़ ही देना चाहिए। और जो मनुष्य मृत्युका भय छोड़ देगा उसे जेलका भय क्योंकर होगा? पाठक यदि विचार करेंगे तो उन्हें मालूम हो जायेगा कि स्वराज्य-प्राप्तिमें हमें जो विलम्ब हो रहा है उसका एकमात्र कारण है --हम लोगोंमें मृत्यु तथा उससे हलके दुःखोंको सहनेकी शक्तिका अभाव । ज्यों-ज्यों अधिकाधिक निरपराध मनुष्य जान-बूझकर मौतको गले लगानेके लिए तैयार होते जायेंगे त्यों-त्यों दूसरे लोगोंका बचाव होता जायेगा और दुःख भी कम होता चला जायेगा। जो दुःख खुशीके साथ सहन किया जाता है वह दुःख नहीं रहता, बल्कि सुख हो जाता है। जो दुःखसे जी चुराता है वह बहुत कष्ट उठाता है और संकटके उपस्थित होनेपर निर्जीव-सा हो जाता है। जो आनन्दके साथ दुःखका स्वागत करनेके लिए पैर बढ़ाता है उसे वह आरम्भिक दुःख, जो केवल दुःखकी कल्पनासे ही उत्पन्न होता है, कैसे हो सकता है ? आनन्द पीड़ापर क्लोरोफार्मका काम करता है। इस विषयपर इस समय जो मुझे इतना लिखना पड़ा सो इसलिए कि यदि "हमें इसी वर्ष स्वराज्य प्राप्त करना हो तो मृत्युका विचार भी कर लेना होगा। लोग पहलेसे तैयारी कर रखते हैं वे आपत्तिसे बच जाते हैं, हमारे विषयमें भी ऐसा हो सकता है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि स्वदेशी-आन्दोलन हमारी ऐसी ही पेशबंदी है। यदि इसमें हमारी फतह हो गई तो मैं समझता हूँ, सरकारको अथवा और किसीको हमारी अग्नि-परीक्षाकी आवश्यकता ही न रहेगी। परन्तु इतना होनेपर भी, यह आवश्यक है कि हम गफलतमें न रहें। सत्ता अन्धी और बहरी होती है। वह अपने बिलकुल पासकी घटनाओंको भी नहीं देख पाती। अपने कानके पासका कोलाहल भी वह नहीं सुन सकती। अतएव यह नहीं कहा जा सकता कि जो सरकार मदोन्मत्त है वह क्या नहीं कर बैठेगी। इसलिए मेरे मनमें यह खयाल उठा कि अब देश-सेवकोंको मृत्यु, जेल अथवा दूसरी आपत्तियोंका एक मित्रकी तरह स्वागत करनेकी तैयारी कर रखनी चाहिए। " जो Gandhi Heritage Portal